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सऊदी अरब को मिडिल पावर के रूप में प्रोजेक्ट करने, क्राउन प्रिंस सलमान कर रहे ये काम

 नईदिल्ली

सऊदी अरब ने बीते सप्ताहांत यूक्रेन में चल रहे युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए एक बैठक की मेजबानी की जिसमें अमेरिका, भारत, चीन समेत ग्लोबल साउथ के लगभग सभी प्रमुख देशों ने हिस्सा लिया. 5-6 अगस्त को सऊदी के जेद्दा में आयोजित इस बैठक को लेकर पर्यवेक्षकों का कहना है कि सऊदी अरब इस बैठक के जरिए महज यूक्रेन संकट का समाधान नहीं चाहता था बल्कि इसके जरिए वो यह भी बताना चाहता था कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) के नेतृत्व में देश का वैश्विक प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है.

फोरम में यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की आलोचना, समर्थन करने वाले और उस पर तटस्थ रहने वाले ग्लोबल साउथ के देशों ने हिस्सा लिया. भारत की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इस बैठक में शामिल हुए जिसमें उन्होंने कहा कि भारत रूस-यूक्रेन युद्ध का स्थायी समाधान तलाश रहा है. 

चीन ने इस तरह के किसी फोरम में पहली बार हिस्सा लिया. चीन यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की आलोचना करने से इनकार करता रहा है और युद्ध के बाद से उसने रूस के साथ अपने आर्थिक और राजनयिक संबंधों को और मजबूती दी है.

बैठक में चीन का शामिल होना सऊदी की कूटनीतिक जीत

चीन ने रूस से तेल और गैस की खरीद रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ा दी है. ऐसे में चीन का जेद्दा बैठक में शामिल होना सऊदी के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत की तरह देखा जा रहा है. पश्चिमी अधिकारियों और पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन को बैठक में शामिल कर सऊदी ने एक कूटनीतिक बढ़त हासिल की है.

बेरूत में रिसर्च सेंटर फॉर कोऑपरेशन एंड पीस बिल्डिंग के प्रमुख, विश्लेषक दानिया कोलीलाट खतीब ने वॉयस ऑफ अमेरिका से बात करते हुए कहा कि मध्य पूर्व के देश अपने क्षेत्र से अमेरिका के पीछे हटने से घबराए हुए हैं. इसी कारण मध्य-पूर्व के सबसे प्रभावशाली देशों में शामिल सऊदी अपने सहयोगियों में विविधता लाने पर काम कर रहा है. चीन सऊदी का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है जिसने ईरान के साथ सऊदी के संबंधों को सुधारने में मदद की है.

खतीब आगे कहते हैं कि हालांकि, अमेरिका चाहता है कि सऊदी अरब के साथ उसके संबंध मजबूत हों जिसके लिए वो कूटनीतिक प्रयास कर रहा है.

वो कहते हैं, 'सऊदी अरब अपनी मर्जी से अपने दोस्तों में विविधता लाना चाहता है, वो केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहता है. वो ऐसा करने में सफल भी रहा है और चीन रूस के साथ उसने अपने संबंधों को मजबूत किया है. वो ईरान के साथ, तुर्की के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश कर रहा है. दूसरी तरफ, अमेरिका भी सऊदी को बढ़ावा दे रहा है कि हम आपको एक प्रमुख वैश्विक भूमिका हासिल करने में मदद करेंगे. अमेरिका ने बैठक में सभी देशों को आने के लिए प्रोत्साहित किया और अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भी भेजा.'

रूस ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया हालांकि, रूसी राष्ट्रपति भवन की तरफ से यह जरूर कहा गया कि रूस बैठक पर करीबी नजर बनाए हुए है.

वहीं, बैठक में शामिल यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने बैठक के बाद कहा कि देशों के बीच मतभेद थे और उन्होंने नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की बहाली का आग्रह किया. 

शांति वार्ता को लेकर एक यूरोपीय अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि बातचीत सकारात्मक रही है और 'इस बात पर सहमति बनी है कि क्षेत्रीय अखंडता और यूक्रेन की संप्रभुता का सम्मान किसी भी शांति समझौते की पहली शर्त होनी चाहिए.'

सऊदी अधिकारियों का कहना है कि यह बैठक दिखाती है कि सऊदी अरब के संबंध यूक्रेन चीन और रूस के साथ कितने मजबूत हैं.

खुद को एक मिडिल पावर के रूप में प्रोजेक्ट करता सऊदी अरब

जिस तरह भारत खुद को ग्लोबल साउथ के लीडर के तौर पर पेश कर रहा है और तेजी से बड़ी वैश्विक शक्ति बनकर उभर रहा है, सऊदी अरब ने भी भारत की राह पकड़ ली है.

इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप मिडिल ईस्ट प्रोग्राम के निदेशक जोस्ट हिल्टरमैन कहते हैं कि सऊदी अरब भारत और ब्राजील की तरह बनना चाहता है, वो विश्व मंच पर एक मिडिल पावर बनना चाहता है.

विश्लेषकों का कहना है कि सऊदी अरब यूक्रेन पर शांति वार्ता आयोजित कर दिखाना चाहता है कि वो एक मिडिल पावर के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंच पर अहम भूमिका निभा सकता है. वो भारत की तरह ही अपनी विदेश नीति रणनीतिक रूप से स्वतंत्र रखना चााहता है जो किसी भी बड़ी वैश्विक समस्या के समाधान के लिए एक मंच मुहैया करा सके.

प्रिंस सलमान सऊदी को ग्लोबल पावर बनाना चाहते हैं और इसके लिए वो लगातार कोशिश करते दिख रहे हैं.

अमेरिका के राइस यूनिवर्सिटी के बेकर इंस्टीट्यूट के रिसर्च फेलो क्रिस्टियन उलरिचसेन कहते हैं कि इस तरह की बैठकों के जरिए सऊदी का मुख्य उद्देश्य क्राउन प्रिंस को बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित करना है. वो कहते हैं कि सऊदी अरब यह दिखाना चाहता है कि वो उन मतभेदों को दूर करने में भी सक्षम है जिसके बारे में और देश केवल सपना देखते हैं.

इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है सऊदी अरब का सीरिया को अरब लीग में वापस शामिल करना.

वैश्विक शक्ति बनने की चाह में क्षेत्रीय दुश्मनी खत्म करता सऊदी अरब

सऊदी अरब के वास्तविक शासक क्राउन प्रिंस ने सत्ता संभालने के बाद से ही सऊदी अरब के प्रभाव में विस्तार की कोशिशें तेज कर दी है. वो तेल पर आधारित सऊदी की अर्थव्यवस्था में विविधता के लिए देश की रूढ़िवादी इस्लामिक छवि को बदल रहे हैं और विदेशी निवेश को आकर्षित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

इसी मकसद से उन्होंने साल 2016 में अपना महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट 'विजन 2030' लॉन्च किया था. इसके जरिए वो सऊदी में विदेशी निवेश और व्यापार को बढ़ा रहे हैं. वो किंगडम को एक सॉफ्ट पावर के रूप में दिखाकर देश की कायापलट करना चाहते हैं. 

प्रिंस सलमान के 'विजन 2030' के लिए जरूरी है मध्य-पूर्व में स्थिरता का होना और बिना क्षेत्रीय झगड़ों को सुलझाए इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है.

जब सीरिया, ईरान से दोस्ती कर सऊदी ने सबको चौंकाया

मई के महीने में जब सऊदी अरब ने जेद्दा शहर में अरब लीग शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी, तब भी दुनिया को उसकी बदलती वैश्विक नीति की एक झलक मिली थी. बैठक में एक दशक से अधिक समय तक अरब लीग से बाहर रहे सीरिया ने हिस्सा लिया.

 

सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद 2011 में शुरू हुए गृहयुद्ध के बाद पहली बार सऊदी अरब पहुंचे थे जिसने सभी को चौंका दिया क्योंकि सऊदी अरब सीरिया में असद के खिलाफ विद्रोहियों का समर्थन करता आया था और उसे अरब लीग से हटा दिया गया था.

हालांकि, इस साल जब फरवरी में सीरिया और तुर्की विनाशकारी भूकंप की चपेट में थे तब सऊदी ने सीरिया में राहत सामग्री भेजकर भूकंप प्रभावितों की मदद की. अरब लीग शिखर सम्मेलन से एक हफ्ते पहले दोनों देशों ने अपने राजनयिक संबंध भी बहाल किए.

क्राउन प्रिंस सलमान ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वो मध्य-पूर्व की स्थिरता के लिए अरब देशों के बीच शांति चाहते हैं.

इसी क्रम में उन्होंने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी ईरान के साथ भी संबंधों को बहाल किया. ईरान और सऊदी अरब ने साल 2016 में अपने राजनयिक संबंधों को तोड़ दिया था और उसके बाद से ही दोनों देशों के रिश्ते बेहद खराब स्थिति में थे हालांकि, चीन की मध्यस्थता से मार्च के महीने में दोनों देशों ने अपनी दुश्मनी भुलाकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और अपने राजनयिक रिश्ते बहाल किए. 

संतुलन बनाने में कामयाब होता सऊदी अरब

सऊदी अरब हाल की सबसे बड़ी वैश्विक घटना रूस-यूक्रेन युद्ध में खुद को एक अहम मध्यस्थ के तौर पर स्थापित करना चाहता है. एक तरफ वो यूक्रेन समस्या के समाधान के लिए देशों को मनाने पर लगा है, तो दूसरी तरफ युद्ध के बाद से रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूती भी दे रहा है. दोनों देश तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक प्लस के अहम सदस्य है और युद्ध के बाद से ही दोनों ने मिलकर तेल के दाम बढ़ाने के मकसद से कई बार तेल उत्पादन में कटौती की है.

अमेरिकी गुट से दूर होता सऊदी अरब प्रिंस सलमान के नेतृत्व में एक बहुध्रुवीय दुनिया का समर्थक है जो अपना वैश्विक प्रभाव बढ़ाने के मकसद से चीन और रूस के करीब जा रहा है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तरह ही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सऊदी से अपनी नजदीकियां बढ़ाने के समर्थक हैं.

एक ब्रिटिश अधिकारी ने कहा, 'पुतिन सऊदी को नई विश्व व्यवस्था में बेहद अहम मानते हैं और सोचते हैं कि वह एमबीएस को अपने साथ ला सकते हैं. सऊदी तेल के अकूत संपत्ति पर बैठा है जिसकी रणनीतिक भूमिका बेहद अहम है.'

सूडान में सऊदी का बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन और बढ़ता कद

इसी साल अप्रैल के महीने में जब अफ्रीकी देश सूडान में गृहयुद्ध छिड़ गया तब कई देशों के नागरिक वहां फंस गए. सऊदी ने इसे एक अवसर के तौर पर लिया और किंग सलमान, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के निर्देश में एक बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया.

सऊदी अरब की नेवी और एयरफोर्स ने मिलकर 8,455 लोगों को युद्धग्रस्त देश से बाहर निकाला गया. इसमें केवल 404 लोग ही सऊदी अरब के नागरिक थे बाकी 8,051 लोग भारत समेत 110 अन्य देशों के थे.

सऊदी ने सूडान से रेस्क्यू कर लाए गए दूसरे देशों के 11,184 नागरिकों को अपने यहां से उनके देश वापस भेजने में भी मदद की. सऊदी के इस कदम की खूब सराहना की गई और इस घटना ने उसके वैश्विक कद को और बढ़ाने में मदद की. 

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