वंदे मातरम’ का इतिहास: कैसे बना राष्ट्रीय गीत और क्यों कुछ मुसलमान करते हैं इसका विरोध

नई दिल्ली
भारत की स्वतंत्रता संग्राम की गूंज में एक ऐसा गीत है जो न केवल राष्ट्रप्रेम की भावना जगाता है, बल्कि मातृभूमि को देवी के रूप में पूजने की परंपरा को जीवंत करता है। 'वंदे मातरम'- ये दो शब्द आज भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में गूंजते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह गीत कैसे और कब रचा गया? कैसे यह बंगाल के एक उपन्यास से निकलकर पूरे देश की आवाज बन गया? और कैसे यह स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बना, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी? आइए, इतिहास की उन पन्नों को पलटें जहां राष्ट्रवाद की लौ पहली बार प्रज्वलित हुई।
वंदे मातरम की जड़ें 19वीं सदी के बंगाल में हैं, जब भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। इस गीत के रचयिता थे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, जिन्हें बंगाली साहित्य का पितामह कहा जाता है। बंकिम चंद्र एक प्रशासनिक अधिकारी थे, लेकिन उनकी रचनाएं राष्ट्रवाद की आग से भरी हुई थीं। गीत की रचना 7 नवंबर 1875 को हुई, जब बंकिम चंद्र अपने घर में बैठे थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, यह गीत एकाएक प्रेरणा से लिखा गया। बंकिम ने इसे संस्कृत और बंगाली के मिश्रण में रचा, जहां संस्कृत श्लोक मातृभूमि की महिमा गाते हैं और बंगाली हिस्सा भावनात्मक गहराई प्रदान करता है। गीत की पहली पंक्तियां हैं:
वंदे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्।
शस्यशामलां मातरम्॥
यह गीत सबसे पहले उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में प्रकाशित हुआ, जो 1882 में पूरा हुआ और धारावाहिक रूप में बंगाली पत्रिका बंगदर्शन में छपा। उपन्यास की पृष्ठभूमि 18वीं सदी का संन्यासी विद्रोह है, जहां भूखे संन्यासी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह करते हैं। 'वंदे मातरम' उपन्यास में संन्यासियों का युद्धगीत है, जो मातृभूमि को दुर्गा देवी के रूप में चित्रित करता है। बंकिम चंद्र ने गीत को संगीतबद्ध करने के लिए अपने भतीजे को प्रेरित किया, लेकिन मूल धुन बाद में जादवपुर विश्वविद्यालय के संगीतकारों द्वारा विकसित की गई। गीत की रचना का उद्देश्य स्पष्ट था – भारतीयों में मातृभूमि के प्रति प्रेम और विदेशी शासन के खिलाफ संघर्ष की भावना जगाना।
स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका: ब्रिटिशों की नींद उड़ाने वाला नारा
वंदे मातरम महज एक गीत नहीं रहा; यह स्वतंत्रता संग्राम का युद्धघोष बन गया। 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार इसे सार्वजनिक रूप से गाया गया, जब रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे अपनी धुन में प्रस्तुत किया। टैगोर की आवाज ने गीत को अमर बना दिया। 1905 के बंगाल विभाजन के दौरान यह गीत स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक बना। बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल जैसे नेता इसे रैलियों में गाते थे। ब्रिटिश सरकार इतनी भयभीत हुई कि 1907 में उन्होंने गीत गाने पर प्रतिबंध लगा दिया। फिर भी, क्रांतिकारी जैसे अरविंद घोष और सुभाष चंद्र बोस इसे गुप्त रूप से गाते रहे। महात्मा गांधी ने भी इसे सराहा, लेकिन पूरे गीत को अपनाने में संकोच किया क्योंकि इसमें हिंदू देवी-देवताओं का उल्लेख था, जो मुस्लिम समुदाय को अलग कर सकता था। फिर भी, आंदोलन में इसका प्रभाव असीम था। 1937 में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे ऑर्केस्ट्रा में प्रस्तुत किया, जिसने इसे वैश्विक स्तर पर पहुंचाया।
राष्ट्रीय गीत का दर्जा: 1950 की ऐतिहासिक घोषणा
स्वतंत्रता के बाद वंदे मातरम को राष्ट्रीय सम्मान मिला। 24 जनवरी 1950 को भारत की संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गीत घोषित किया। यह निर्णय डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में लिया गया। उसी दिन जना गना मन को राष्ट्रीय गान बनाया गया।राष्ट्रीय गीत के रूप में केवल उपन्यास के पहले दो छंदों को अपनाया गया, क्योंकि पूरे गीत में विद्रोही तत्व थे और धार्मिक संदर्भ मुस्लिम लीग की आपत्तियों के कारण विवादास्पद थे। जवाहरलाल नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने समझौता किया। आज, सरकारी समारोहों में पहले दो छंद गाए जाते हैं।
वंदे मातरम विवादों से अछूता नहीं रहा। 2006 में शताब्दी समारोह के दौरान कुछ मुस्लिम संगठनों ने धार्मिक आधार पर विरोध किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे राष्ट्रप्रेम का प्रतीक माना। गीत की विरासत फिल्मों, स्कूलों और खेल आयोजनों में जीवित है।
देश भर में हो रहा आयोजन
राष्ट्रीय गीत के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में देश भर में 150 महत्वपूर्ण स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में सामूहिक रूप से ‘वंदे मातरम’ गाया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में ऐसे ही एक कार्यक्रम में भाग लेंगे। संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री हिस्सा लेंगे। इसके साथ ही विभिन्न कार्यक्रमों की शुरुआत होगी।
इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में होने वाले उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री मोदी मुख्य अतिथि होंगे। समारोह सात नवंबर की सुबह सार्वजनिक स्थानों पर स्कूली बच्चों, कॉलेज के छात्रों, अधिकारियों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों सहित नागरिकों की भागीदारी के साथ 'वंदे मातरम' के पूर्ण संस्करण के सामूहिक गायन के साथ शुरू होगा।
मंत्रालय ने कहा कि गीत के ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय गीत के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में राष्ट्रव्यापी समारोहों को मंजूरी दी थी। अधिकारियों ने बताया कि उद्घाटन समारोह में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम, 'वंदे मातरम' के 150 वर्षों के इतिहास पर एक प्रदर्शनी, एक लघु वृत्तचित्र फिल्म का प्रदर्शन और एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी किया जाएगा।
मुत्ताहिदा मजलिस-ए-उलमा ने ‘वंदे मातरम’ कार्यक्रम को बताया गैर-इस्लामिक, सरकार से निर्देश वापस लेने की मांग
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के धार्मिक संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले मुत्ताहिदा मजलिस-ए-उलेमा (MMU) ने बुधवार को केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार के एक आदेश की कड़ी आलोचना की है। इस आदेश में स्कूलों को ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सांस्कृतिक और संगीत कार्यक्रम आयोजित करने तथा सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों की अनिवार्य भागीदारी सुनिश्चित करने को कहा गया है।
एमएमयू की अगुवाई मीरवाइज उमर फारूक कर रहे हैं। उन्होंने इस निर्देश को 'गैर-इस्लामिक' और 'आरएसएस प्रेरित हिंदू विचारधारा थोपने की कोशिश' करार दिया है। संयुक्त बयान में ग्रैंड मुफ्ती नासिर-उल-इस्लाम और मौलाना रहमतुल्लाह समेत कई धार्मिक नेताओं ने कहा कि यह आदेश इस्लाम की मूल आस्था- तौहीद (अल्लाह की एकता) के सिद्धांत के विरुद्ध है। उन्होंने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से इस 'जबरन थोपे गए निर्देश' को तुरंत वापस लेने की अपील की।
एमएमयू द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि वंदे मातरम का गायन या पाठ इस्लाम के अनुसार अनुचित है, क्योंकि इसमें ऐसे भाव और अभिव्यक्तियां हैं जो अल्लाह की एकता के सिद्धांत से विरोधाभासी हैं। इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी अन्य के प्रति भक्ति या उपासना का कोई स्थान नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा जारी सर्कुलर के अनुसार, देशभर के विद्यालयों को नवंबर माह में विशेष सभाओं का आयोजन कर छात्रों और शिक्षकों से राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम गवाने का निर्देश दिया गया है। इसके तहत जम्मू-कश्मीर प्रशासन के संस्कृति विभाग ने भी 7 नवंबर से सभी स्कूलों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने के आदेश दिए हैं।
एमएमयू ने कहा कि मुस्लिम समुदाय अपने देश से गहरा प्रेम रखता है, परंतु वह प्रेम सेवा, करुणा और समाज में योगदान के माध्यम से व्यक्त किया जाना चाहिए- ऐसे किसी कार्य से नहीं जो धार्मिक आस्था के विरुद्ध हो। संगठन ने कहा कि किसी भी मुस्लिम छात्र या संस्था को अपनी आस्था के खिलाफ किसी गतिविधि में जबरन शामिल करना अन्यायपूर्ण और अस्वीकार्य है।
बयान में आगे कहा गया कि यह कदम संस्कृतिक उत्सव के नाम पर मुस्लिम बहुल क्षेत्र में आरएसएस प्रेरित हिंदुत्व विचारधारा थोपने की एक सुनियोजित कोशिश प्रतीत होती है, न कि वास्तविक एकता और विविधता के सम्मान को बढ़ावा देने की। एमएमयू ने यह भी कहा कि इस आदेश से क्षेत्र के मुसलमानों में गहरी व्यथा और असंतोष फैल गया है, और बड़ी संख्या में लोग धार्मिक नेतृत्व से संपर्क कर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। अंत में संगठन ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने तत्काल कोई कदम नहीं उठाया, तो वह राज्यभर के सभी धार्मिक नेताओं की बैठक बुलाकर आगे की रणनीति तय करेगा।
भाजपा की उत्सव मनाने की योजना
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी इस उपलब्धि को एक उत्सव के रूप में मनाने की योजना बना रही है। नई दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने कहा, “इस अवसर को मनाने के लिए सात नवंबर से 26 नवंबर (संविधान दिवस) तक देश भर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। ’’
उन्होंने बताया कि सात नवंबर को 150 महत्वपूर्ण स्थानों पर वंदे मातरम गाया जाएगा, जिसके बाद स्वदेशी उत्पादों के उपयोग की शपथ ली जाएगी। इस दौरान कविता लेखन, पाठन और चित्रकला जैसे कई अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। जिन स्थानों पर सात नवंबर को वंदे मातरम का गायन आयोजित किया जाएगा उनमें कारगिल युद्ध स्मारक, अंडमान और निकोबार सेलुलर जेल, ओडिशा का स्वराज आश्रम, आगरा में शहीद स्मारक पार्क और वाराणसी में नमो घाट शामिल हैं।
पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ने कहा कि वंदे मातरम अंग्रेजों से भारत की मुक्ति के लिए एक प्रमुख मंत्र के रूप में उभरा। संवाददाता सम्मेलन में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव ओम प्रकाश धनखड़ ने कहा कि सभी राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस अवसर पर अपने प्रदेश की राजधानियों में इसी प्रकार के कार्यक्रमों में भाग लेंगे। संस्कृति मंत्रालय के अनुसार ऐसा माना जाता है कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इस गीत की रचना सात नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के अवसर पर की थी। मातृभूमि की वंदना में गाए गए इस गीत को 1950 में राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया था।



