मुस्लिम देशों संग रिश्तों पर PM की हुई तारीफ,कैसे चल पड़े रिश्ते
नईदिल्ली
हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद शशि थरूर ने इस्लामिक देशों से रिश्तों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की तारीफ की थी। एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने यह भी कह दिया था कि 'मुस्लिम देशों से हमारे रिश्ते कभी इतने अच्छे नहीं रहे।' यह चर्चा दिलचस्प होगी कि हिंदुत्व नेता की छवि रखने वाली पीएम मोदी और खाड़ी के अरब देशों के बीच रिश्ते कैसे चल पड़े।
क्या बोले थरूर
थरूर ने कहा था, 'विदेश नीति को लेकर मैं मोदी शासन का आलोचक हुआ करता था, लेकिन मुझे लगता है कि उन्होंने सभी मोर्चों पर बेहतर ढंग से काम किया है।'
उन्होंने कहा, 'मुझे याद है कि पीएम मोदी के पहले साल में उन्होंने 27 देशों की यात्रा की थी, जिसमें एक भी मुस्लिम देश नहीं था। कांग्रेस सांसद रहते हुए मैंने यह मुद्दा उठाया भी था, लेकिन अब मुझे यह कहते हुए खुशी होती है कि अब जो उन्होंने इस्लामिक देशों तक पहुंच के लिए किया है, वह शानदार है। यह इससे बेहतर नहीं हो सकता। बड़े मुस्लिम देशों स हमारे संबंध इतने अच्छे कभी नहीं थे। मैं खुशी से अपनी पुरानी आलोचना को वापस लेता हूं।'
भारत और खाड़ी अरब देश
कहा जाता है कि मोदी सरकार ने भारत और इस्लामिक देशों के रिश्तों को मजबूत करने के काम को गंभीरता से लिया है। 8 सालों के दौरान अगस्त 2015, फरवरी 2018, अगस्त 2019 और जून 2022 में पीएम मोदी संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का चार बार दौरा कर चुके हैं। उनसे पहले दिवंगत इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए 1981 में यूएई गईं थीं। गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान एक रैली में पीएम ने कहा था कि भारत ने सऊदी अरब, यूएई और बहरीन के साथ दोस्ती मजबूत की है।
किसी ने बताया बड़ा भाई, तो किसी ने प्रोटोकॉल तक तोड़ा
2019 में भारत दौरे पर आए सऊदी अरब के मोहम्मद बिन सलमान तब क्राउन प्रिंस थे। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, तब राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में प्रिंस ने कहा था, 'हम दोनों भाई हैं। प्रधानमंत्री मोदी मेरे बड़े भाई हैं। मैं उनका छोटा भाई हूं और उनकी प्रशंसा करता हूं।' उन्होंने यह भी कहा था कि भारत के लोग पिछटले 70 सालों से दोस्त हैं और सऊदी के निर्माण में ये भी भागीदार रहे हैं।
जून 2022 में जब पीएम मोदी अबुधाबी पहुंचे, तो UAE के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाह्यान ने एयरपोर्ट पहुंचकर उनका स्वागत किया था। खास बात है कि यह प्रोटोकॉल के खिलाफ था। 2017 में गणतंत्र दिवस के मौके पर मोदी सरकार की ओर से नाह्यान को चीफ गेस्ट के तौर पर न्योता भी दिया गया था। तब वह यूएई के राष्ट्रपति नहीं होते हुए भी समारोह में शामिल हुए थे। दरअसल, परंपरा कहती है कि किसी देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को ही मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया जाता है।
कैसे बने मजबूत संबंध
बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक, थिंक टैंक कार्नेगी एन्डाउमेंट से बातचीत में एक पूर्व राजदूत ने बताया था कि पीएम मोदी की व्यावहारिक राजनीति और एक मजबूत नेता का रवैया सऊदी और यूएई के प्रिंस को पसंद आता है। खास बात है कि यह वही थिंक टैंक है, जिसने 2019 की एक रिपोर्ट में अरब प्रायद्वीप से रिश्तों में मोदी की राजनीतिक पृष्ठभूमि बाधा बनने की बात कही थी।
रिपोर्ट के अनुसार, लीबिया और जॉर्डन में भारत के राजदूत रहे अनिल त्रिगुणायत ने बताया कि मोहम्मद बिन सलमान और मोहम्मद बिन जायद अल नाह्यान का मानना है कि भारत के साथ रिश्ते बहुत जरूरी हैं।
यहां आई खटास
मई 2022 में भाजपा की प्रवक्ता रहीं नूपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी कर दी थी। उस दौरान कई इस्लामिक देशों की तरफ से जमकर आपत्ति जताई गई और भारत से जवाब की मांग की गई थी। इतना ही नहीं तब कतर दौरे पर गए तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के साथ कतर ने राजकीय भोज तक रद्द कर दिया था।
इससे पहले 2005 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी पर अमेरिका ने विजा बैन लगा दिया था। दरअसल, 2002 गुजरात दंगों को लेकर मोदी की काफी आलोचना की गई थी, लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रतिबंध को हटा लिया गया था।
कारोबारी रिश्ते
रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि 1970 के दशक में भारत और यूएई का द्विपक्षीय कारोबार 18 करोड़ डॉलर का था, जो अब बढ़कर 70 अरब डॉलर के पार चला गया है। अमेरिका और चीन के बाद 2021-22 में यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार था। 2022 में भारत और यूएई के बीच समझौता भी हुआ, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब तक ले जाने की बात कही गई।
इधर, सऊदी महाराष्ट्र में 12 लाख बैरल की रिफाइनरी बनाने पर विचार कर रहा है, जिसकी अनुमानित लागत 44 अरब डॉलर हो सकती है। साथ ही कहा जाता है कि 2006 में सऊदी के किंग अब्दुल्लाह बिन अब्दुल अजीज अल साऊद का भारत दौरा दोनों देशों के रिश्तों के लिए अहम साबित हुआ। वहीं, बीते दो दशकों में सऊदी और यूएई नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश भी कर रहे हैं।