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दिल्ली में नहीं हुई कृत्रिम बारिश, फिर भी IIT कानपुर ने बताया ‘छिपा फायदा’!

नई दिल्ली 
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार इन दिनों कृत्रिम बारिश की कोशिशों में जुटी हुई है। बहुत से लोग इस बात को लेकर अचरज में हैं कि क्या बादलों को इच्छा मुताबिक बरसने के लिए मजबूर किया जा सकता है। दिल्ली में बादलों पर रसायन के छिड़काव के लिए उड़ते विमानों की तस्वीरों को आपने पहली बार देखा होगा, लेकिन यह नई बात नहीं है। कई देशों में इस तकनीक के जरिए जरूरत मुताबिक बारिश कराई जा चुकी है। दिल्ली में भी करीब पांच दशक पहले कृत्रिम बारिश का परीक्षण किया गया था।

दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बीच 53 वर्षों के अंतराल के बाद मंगलवार को कृत्रिम वर्षा कराने का परीक्षण किया गया। हालांकि, मौसम विभाग ने दिल्ली में वर्षा के कोई संकेत दर्ज नहीं किए। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि दिल्ली सरकार ने आईआईटी-कानपुर के सहयोग से बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग, मयूर विहार और बादली सहित दिल्ली के कुछ हिस्सों में परीक्षण किए तथा अगले कुछ दिनों में इस तरह के और परीक्षण किए जाने की योजना है। बाद में शाम को सरकार ने एक रिपोर्ट में कहा कि कृत्रिम वर्षा के परीक्षणों से उन स्थानों पर अति सूक्ष्म कणों में कमी लाने में मदद मिली। राजधानी में इस प्रक्रिया को अंजाम दिया गया, जबकि परिस्थितियां इसके लिए आदर्श नहीं थीं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दो बार बारिश दर्ज की गई। इसके तहत नोएडा में शाम चार बजे 0.1 मिलीमीटर बारिश और ग्रेटर नोएडा में शाम चार बजे 0.2 मिलीमीटर दर्ज हुई। आधिकारिक रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) निगरानी के लिए 20 स्थानों से विशेष रूप से अति सूक्ष्म कण पीएम 2.5 और पीएम 10 को लेकर आंकड़े एकत्र किए गए, जो कृत्रिम वर्षा से सीधे प्रभावित होंगे।

परीक्षण कैसे किया गया इसका विवरण देते हुए सिरसा ने कहा कि इसने आठ झोंकों में रसायनों का छिड़काव किया। प्रत्येक झोंके में छिड़के गए रसायन का वजन दो से 2.5 किलोग्राम था और परीक्षण आधे घंटे तक चला। रसायन का छिड़काव करने का प्रत्येक झोंका दो से ढाई मिनट का था। अधिकारियों के अनुसार, परीक्षण के दौरान कृत्रिम वर्षा कराने के लिए विमान से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड यौगिक का छिड़काव किया गया।

उन्होंने कहा कि मौसम की स्थिति के आधार पर 15 मिनट से 24 घंटे की अवधि में बारिश होने की संभावना है और रात में बाद में भी बारिश हो सकती है। दूसरा परीक्षण भी दिन में बाद में बाहरी दिल्ली में किया गया और बादली जैसे इलाकों को कवर किया गया। परीक्षण के दौरान आठ झोंकों में रसायनों का छिड़काव किया गया। सिरसा ने बताया कि अगले कुछ दिनों में ऐसे नौ से 10 परीक्षणों की योजना बनाई गई है।

सूत्रों ने बताया कि आईआईटी-कानपुर ने दिल्ली के ऊपर लगभग 25 समुद्री मील लंबाई और चार समुद्री मील चौड़ाई वाले गलियारे में सफलतापूर्वक अभियान को अंजाम दिया। इसमें सबसे लंबा गलियारा खेकड़ा और बुराड़ी के बीच था। पहले चरण में जमीन से लगभग 4,000 फुट की ऊंचाई पर छह झोंकों में रसायन छोड़े गए और इनकी कुल अवधि करीब साढ़े अठारह मिनट रही। विमान ने दूसरी उड़ान अपराह्न 3:55 बजे भरी और इस दौरान लगभग 5,000 से 6,000 फुट की ऊंचाई से आठ झोंकों में रसायनों का छिड़काव किया गया।

दिल्ली में करीब 53 साल पहले भी इस तरह की कोशिश हुई थी। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने बताया कि दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का पहला परीक्षण 1957 के मॉनसून के दौरान किया गया था, जबकि दूसरा प्रयास 1970 के दशक की शुरुआत की सर्दियों में किया गया था।

भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1971 और 1972 में किए गए दूसरे परीक्षण राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला परिसर में किए गए थे, जिसमें मध्य दिल्ली का लगभग 25 किलोमीटर क्षेत्र शामिल था। रिपोर्ट में कहा गया है कि उस समय भू-आधारित उत्प्रेरकों से निकलने वाले सिल्वर आयोडाइड कणों ने सूक्ष्म नाभिक के रूप में काम किया था, जिनके चारों ओर नमी संघनित होकर वर्षा की बूंदों में परिवर्तित हो गई थी।

दिसंबर 1971 और मार्च 1972 के बीच 22 दिनों को प्रयोग के लिए अनुकूल माना गया था। आईआईटीएम की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 11 दिनों में कृत्रिम वर्षा कराई गई, जबकि शेष 11 दिनों को तुलनात्मक अध्ययन के उद्देश्य से नियंत्रण अवधि के रूप में रखा गया था।

पर्यावरणविद् विमलेंदु झा ने कहा' 'कृत्रिम बारिश से प्रदूषण कम हो सकता है, लेकिन यह केवल अस्थायी समाधान है, जो कुछ दिनों के लिए राहत दे सकता है। ऐसा हर बार नहीं किया जा सकता।' उन्होंने कहा कि सरकार को जमीनी स्तर पर प्रदूषण से निपटने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। झा ने सवाल किया,'कृत्रिम बारिश से मिट्टी और जल निकायों पर भी असर पड़ता है, क्योंकि इसके लिए सल्फर और आयोडाइड जैसे रसायनों का छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा, यह तरीका शहर-विशिष्ट है, पड़ोसी राज्यों से आने वाले प्रदूषकों का क्या?’

 

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