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कोलकाता एयरपोर्ट में मस्जिद: सुरक्षा में बड़ा खतरा, रनवे से होकर जाते हैं नमाजी

कोलकाता

कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के अंदर मौजूद बैंकड़ा मस्जिद एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में है। दिलचस्प बात यह है कि कोलकाता और इसके आसपास रहने वाले लोग तो इसके बारे में जानते हैं, लेकिन शहर के कई लोग इस तथ्य से अनजान हैं कि एयरपोर्ट के भीतर, सेकेंडरी रनवे से 300 मीटर से भी कम दूरी पर एक मस्जिद मौजूद है और यह वर्षों से सुरक्षा व संचालन से जुड़े विवादों का कारण बनी हुई है।

बीजेपी के सवाल और मंत्रालय की स्वीकारोक्ति

विवाद बुधवार को तब फिर भड़का जब पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष सुमिक भट्टाचार्य ने केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) से मस्जिद को लेकर पूछे गए प्रश्न और उसके उत्तर को सार्वजनिक किया। मंत्रालय ने स्वीकार किया कि मस्जिद की मौजूदगी रनवे संचालन में बाधा उत्पन्न करती है और आपात स्थितियों में रनवे के उपयोग को प्रभावित करती है।

मंत्रालय ने स्वीकार किया कि मस्जिद सेकेंडरी रनवे के थ्रेशोल्ड को 88 मीटर पीछे धकेलती है, जिससे आपात स्थिति में रनवे का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता। भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने इसे वोटबैंक की राजनीति करार देते हुए लिखा- मस्जिद सेकेंडरी रनवे के पास स्थित है। यह सुरक्षित ऑपरेशन में बाधा डालती है और रनवे थ्रेशोल्ड को 88 मीटर तक खिसकाना पड़ता है। यह आपातकालीन स्थिति में रनवे के उपयोग को प्रभावित करता है। यात्रियों की सुरक्षा तुष्टीकरण की राजनीति की भेंट नहीं चढ़ सकती।
पहले कौन आया- मस्जिद या एयरपोर्ट?

इस विवाद का सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि पहले कौन आया? इस मस्जिद को स्थानीय लोग बैंकड़ा मस्जिद कहते हैं। यह 1890 के दशक में बनी थी- यानी कोलकाता हवाई अड्डे के अस्तित्व में आने से कई दशक पहले। उस समय यह इलाका एक गांव था। 1924 में ब्रिटिश सरकार ने दमदम में एयरोड्रोम बनाया, लेकिन मस्जिद उससे भी पहले की थी।

बाद में 1950-60 के दशक में जब एयरपोर्ट का विस्तार हुआ और सेकेंडरी रनवे जोड़ा गया, तब आसपास के गांव तो हटा दिए गए, लेकिन मस्जिद को शिफ्ट नहीं किया गया। तब आसपास के गांव खाली कराकर लोगों को जेसोर रोड के पार मध्यमग्राम में बसाया गया। 1962 में पश्चिम बंगाल सरकार ने जमीन अधिग्रहण कर एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) को सौंप दी। उस समय मस्जिद को बचाने का समझौता हुआ था, जिसके चलते इसे हटाया नहीं गया। तब से यह मस्जिद एयरपोर्ट के ऑपरेशनल एरिया के अंदर ही बनी हुई है।

बार-बार कोशिशें, बार-बार असफलता

 रिपोर्ट के मुताबिक, दशकों से मस्जिद को बाहर किसी नई जगह पर शिफ्ट करने की कोशिशें होती रही हैं, लेकिन हर बार मुस्लिम समुदाय के विरोध के कारण बात अटक जाती है। पिछले कई दशकों में केंद्र और राज्य सरकारों ने मस्जिद को पास के किसी नए स्थान पर शिफ्ट करने का प्रस्ताव रखा, पर मुस्लिम समुदाय ने इसे बार-बार ठुकरा दिया। अधिकारियों ने भी मस्जिद को गिराने का नहीं, बल्कि सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करने का ही प्रस्ताव दिया था।

2003 में, एक बैठक के बाद रनवे को मोड़कर समस्या का समाधान करने का निर्णय लिया गया। 2019 में, एएआई ने जेसोर रोड से मस्जिद तक एक सुरंग (टनल) बनाकर ऊपर की जमीन को टैक्सी ट्रैक के लिए उपयोग करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन सुरक्षा वजहों से मंजूरी नहीं मिली। 2023 में, एयरपोर्ट अथॉरिटी ने एक आवागमन बस सेवा शुरू की, ताकि नमाजियों को एयरपोर्ट के संचालन क्षेत्र से सुरक्षित होकर मस्जिद तक पहुंचाया जा सके। रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में नमाजियों के लिए 225 मीटर लंबा बस सर्विस और पैदल रास्ता शुरू किया गया, जो टैक्सीवे के ऊपर से गुजरता है- यानी विमानों के आने-जाने के रास्ते पर ही लोग चलते हैं।

सुरक्षा का गंभीर सवाल

  •     मस्जिद की वजह से सेकेंडरी रनवे का 88 मीटर हिस्सा इस्तेमाल नहीं हो पाता।
  •     प्राइमरी रनवे बंद होने पर आपात लैंडिंग में दिक्कत।
  •     रोजाना 50-60 लोग नमाज पढ़ने आते हैं, जुमे को 200-250 और रमजान में और ज्यादा।
  •     विमानन सुरक्षा के सख्त नियमों के दौर में इतने संवेदनशील क्षेत्र में आम लोगों का आना-जाना जोखिम भरा है।

निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लिमा नसरीन ने 2018 में लिखा था- मस्जिद की वजह से कोई भी बाहर का व्यक्ति सुरक्षित क्षेत्र में घुस सकता है। मस्जिद की लोकेशन सुरक्षा के लिहाज से जोखिम पैदा करती है और मुस्लिम समुदाय को आगे आकर समाधान निकालना चाहिए ताकि सकारात्मक संदेश जाए।

क्या था पहले- गांव, मस्जिद या हवाईअड्डा?

स्पष्ट रूप से: पहले गांव, फिर मस्जिद, और उसके बाद 1924 में एयरपोर्ट। बाद के दशकों में एयरपोर्ट बढ़ता गया, रनवे का विस्तार होता गया, लेकिन मस्जिद वहीं बनी रही- जिसने आज एक कठिन प्रशासनिक और सुरक्षा संबंधी स्थिति पैदा कर दी है।

कोलकाता एयरपोर्ट का घटता कद

एक समय कोलकाता एयरपोर्ट भारत का तीसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा था। 1940-60 के दशक में एयर फ्रांस, KLM, पैन एम, एयरोफ्लोट जैसी अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस यहां रुकती थीं। आज यह छठे स्थान पर खिसक चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि विस्तार में देरी का एक बड़ा कारण यही मस्जिद भी है। नई टर्मिनल और अन्य सुविधाओं के लिए जगह चाहिए, लेकिन मस्जिद आड़े आ रही है। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया, केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय मुस्लिम समुदाय- सभी पक्षों की सहमति के बिना यह गतिरोध खत्म होना मुश्किल है। मस्जिद को गिराने की कोई बात नहीं हो रही, सिर्फ पास में ही नई जगह पर शिफ्ट करने का प्रस्ताव है, लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल सका। 130 साल पुरानी यह ऐतिहासिक मस्जिद आज लाखों यात्रियों की सुरक्षा और देश के एक महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार के बीच फंस गई है। देखना यह है कि आने वाले दिनों में इस जटिल मुद्दे का कोई सम्मानजनक और व्यावहारिक हल निकल पाता है या नहीं।

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