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मिशन चंद्रयान कामयाब होता है तो तमिलनाडु की होगी विशेष भूमिका, मिट्टी से लेकर वैज्ञानिक दे रहे योगदान

चेन्नई
बुधवार (23 अगस्त) की शाम चंद्रयान -3 मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश करेगा। ऐसे में चंद्रयान-3 के तमिल कनेक्शन की चर्चा करना जरूरी है। चंद्रयान -2 मिशन निदेशक मयिलसामी अन्नादुरई और चंद्रयान-3 परियोजना के निदेशक वीरमुथुवेल पी ने इसरो के इस मिशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ये दोनों वैज्ञानिक तमिलनाडु से आते हैं। 'मून मैन ऑफ इंडिया' कहे जाने वाले वैज्ञानिक मयिलसामी अन्नादुरई ने साल 2008 में पहले चंद्रयान मिशन का नेतृत्व किया था, जबकि एम वनिता ने 2019 में चंद्रयान -2 मिशन का नेतृत्व किया था और एम वीरमुथुवेल वर्तमान चंद्रयान -3 मिशन का नेतृत्व कर रहे हैं।

चंद्रयान -3 ने 14 जुलाई को भरी उड़ान
चंद्रयान-3 के 14 जुलाई को दोपहर 2.35 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरने के बाद से वीरमुथुवेल पी रॉकेट को ट्रैक करने के लिए बेंगलुरु में इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (ISTRAC) में वापस चले गए। चंद्रयान मिशन में शामिल वैज्ञानिकों के अलावा चंद्रयान-3 मिशन का अन्य महत्वपूर्ण पहलू चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग करवाना है और पेलोड को आगे बढ़ाना है।

नामक्कल की मिट्टी चांद के सतह के समान
वहीं, साल 2012 से तमिलनाडु के नामक्कल जिला चंद्रयान मिशन के परीक्षण के लिए इसरो को लगातार मिट्टी की सप्लाई कर रहा है क्योंकि नामक्कल की मिट्टी चांद के सतह के समान है। नामक्कल ने इसरो को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर मॉड्यूल की क्षमता का परीक्षण करने में सक्षम बनाया है।

तमिलनाडु के लिए डबल खुशखबरी
इस तरह अगल चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है, तो यह तमिलनाडु के लिए डबल खुशखबरी होगी। यह तीसरी बार है कि तमिलनाडु ने महत्वाकांक्षी चंद्रमा मिशनों के परीक्षण के लिए बेंगलुरु मुख्यालय वाली अंतरिक्ष एजेंसी को जरूरी मिट्टी की सप्लाई की है।

इसरो को 50 टन मिट्टी भेजी गई
पेरियार विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के निदेशक और प्रोफेसर एस अंबाझगन के अनुसार, नामक्कल क्षेत्र में इस तरह की मिट्टी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, जिससे इसरो को अनुसंधान करने में मदद मिली। उन्होंने कहा, "हम भूविज्ञान में अनुसंधान करने में लगे हुए हैं। तमिलनाडु में उस तरह की मिट्टी है जो चंद्रमा की सतह पर मौजूद है, विशेष तौर से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद मिट्टी के समान है। चंद्रमा की सतह पर मौजूद है।"

उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, "चंद्रमा अन्वेषण कार्यक्रम की घोषणा के तुरंत बाद हम इसरो को मिट्टी भेज रहे हैं।" सेलम विश्वविद्यालय में रिमोट सेंसिंग और भूजल अन्वेषण में विशेषज्ञता रखने वाले अंबाजगन ने कहा, "इसरो को लगभग 50 टन मिट्टी भेजी गई थी, जो चंद्रमा की सतह पर मौजूद मिट्टी के समान थी।" उन्होंने कहा, अलग-अलग परीक्षण करने के बाद इसरो के वैज्ञानिकों ने पुष्टि की कि नामक्कल क्षेत्र में उपलब्ध मिट्टी चंद्रमा की सतह से मेल खाती है।

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