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कैसे और कब चंद्रमा की सतह पर उतरेगा हमारा चंद्रयान? जानें अब तक का शानदार सफर

नई दिल्ली
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चंद्रयान -3 मिशन को बड़ी सफलता हाथ लगी है। प्लान को मुताबिक तय समय पर 5 अगस्त को चंद्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में स्तापित हो गया ह। इसरो ने पुष्टि की है कि शाम 7  बजे चंद्रयान चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया। इसे 14 जुलाई 2023 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च कियागया था। इसके बाद 1 अगस्त तक यह पृथ्वी के चक्कर लगाता रहा। इसके बाद चंद्रयान ने अपने लक्ष्य की ओर छलांग लगा दी। अब 23 अगस्त को लैंडर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। इसके साथ ही अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला चौथा देश बन जाएगा। बता दें कि चंद्रयान-3 में लैंडर, रोवर और एक प्रोपल्सन मॉड्यूल है जिनका कुल वजन 3900 किलोग्राम है।

कैसा रहा अब तक का सफर
सबसे पहले चंद्रयान पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया  और यह इलिप्टिकल रास्ते पर चक्कर लगाने लगा। इस कक्षा की सबसे ज्यादा दूरी 127609 किलोमीटर तो सबसे कम दूरी 236 किलोमीटर थी। 20 जुलाई को यह अंडाकार रास्ता बढ़कर 71351X 233 किलोमीटर का हो गया। 1 अगस्त की रात में चंद्रयान ने पृथ्वी की कक्षा छोड़कर चंद्रमा की ओर छलांग लगा दी। इसके बाद पांच अगस्त को यह चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया। चंद्रयान का लैंडर और रोवर चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करेंगे और 14 दिन तक प्रयोग करेंगे। वहीं प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में रहकर धरती से आने वाले रेडिएशन्स की जानकारी लेगा। यह भी पता लगाया जाएगा कि चंद्रमा पर भूकंप कैसे आता है।

कैसे चांद पर होगी सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो के मुताबिक 23 अगस्त की शाम 5 बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान चांद पर पहुंच जाएगा। 5 अगस्त को ही हमारा चंद्रयान चांद की कक्षा में पहुंचकर इसका चक्कर लगाना शुरू कर चुका है। अब यह 16 अगस्त तक चंद्रमा के चक्कर लगाएगा। 17 अगस्त को चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की दूरी पर लैंडर प्रोपल्शन मोड्यूल सो अलग हो जाएगा। इसके बाद लैंडर 100X30 किलोमीटर की कक्षा में घूमेगा और अपनी गति धीरे-धीरे कम करेगा। 23 अगस्त को यह चंद्रमा पर उतरेगा। इसके बाद रोवर बाहर निकलेगा और 14 दिन तक प्रयोग करेगा। बता दें कि रोवर लैंडर को डेटा भेजेगा और फिर लैंडर प्रोपल्शन मोड्यूल को।

चंद्रमा के ध्रुवीय इलाके एक दूसरे से बहुत अलग हैं। चंद्रमा का वायुमंडल नहीं है ऐसे में सूरज की किरणें सीधी पहुंचती हैं। कहीं का हाल यह है कि मिट्टी एकदम  जल गई है और इससे बारूद जैसी गंध आती है। वहीं दूसरी ओर चंद्रमा की सतह पर कभी सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती और यहां का तापमान 200 डिग्री से भी कम है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस इलाके में बर्फ के रूप में पानी हो सकता है। चंद्रयान का लैंडर दक्षिणी ध्रुव के पास लैंड करेगा। इससे पहले जो भी लैंडर चंद्रमा पर उतरे हैं वे या तो भूमध्यरेखीय क्षेत्र में हैं या फिर चंद्र मूध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में। रोवर सोलर पैनल्स से पावर जनरेशन करेंगे। इसलिए मिशन 14 दिन का ही है क्योंकि इसके बात चंद्रमा के उस इलाके में रात हो जाएगी और साथ ही पावर जनरेशन भी बंद हो जाएगा।

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