छत्तीसगढ़राज्य

टमाटर की खेती करने वाले किसान रो रहे खून के आंसू , सड़क में फेंके कई क्विंटल टमाटर

जशपुर

छत्तीसगढ़ में टमाटर की खेती करने वाले किसान खून के आंसू रो रहे हैं, क्योंकि खेतों में कई टन टमाटर की फसल तैयार है लेकिन उसका खरीदार कोई नहीं है. जशपुर के लुड़ेग में टमाटर 1 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रहा है. इससे किसानों को लाखों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस समस्या से परेशान किसान आज कई टन टमाटर सड़कों में फेंक कर सस्ते दाम का विरोध प्रदर्शन करते नजर आए.

दरअसल, इन दिनों टमाटर अधिकतम 10 रुपए किलों के भाव बिक रहे हैं. अन्य राज्यों में भी टमाटर की अच्छी पैदावार होने के चलते प्रदेश के किसान दूसरे राज्यों की मंडियों तक टमाटर नहीं भेज पा रहे हैं. स्थिति ऐसी बन गई है कि खेतों में टमाटर की फसलें पड़ी-पड़ी सड़ने लगी हैं. सस्ते दाम और कम डिमांड के चलते लुड़ेग क्षेत्र के किसान खून के आंसू रो रहे हैं.

आपका बता दें, इस टमाटर की खेती में एक बीघे में 20 से 25 हजार रुपये की लागत आती है. जबकि एक बीघे में डेढ़ से 2 लाख रुपये तक की कमाई होती है.

जानिए कैसे होती है हाइब्रिड टमाटर की खेती
हाइब्रिड टमाटर की खेती में खर्च कुछ ज्यादा होता है, खासकर कीटनाशक दवाइयों पर. हालांकि, यह खेती ज्यादा मुनाफा देने वाली होती है. हाइब्रिड टमाटर की खेती आमतौर पर मल्चिंग विधि से की जाती है, जो पौधों के लिए फायदेमंद साबित होती है.

इसमें सबसे पहले टमाटर के बीजों की नर्सरी तैयार की जाती है, जिसे 15 से 20 दिनों तक रखकर तैयार किया जाता है. इसके बाद खेत की तैयारी की जाती है, जिसमें गोबर या वर्मी कंपोस्ट खाद डाली जाती है और 2-3 बार जुताई की जाती है. फिर खेत में बेड बनाए जाते हैं और प्लास्टिक मल्च बिछाई जाती है. इसके बाद टमाटर के पौधों को रोपा जाता है. रोपाई के बाद पौधों की सिंचाई जरूरी होती है, और जब पौधे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें बांस की डोरी से बांध दिया जाता है. लगभग 60-65 दिनों में टमाटर के फल लगने लगते हैं.

हाइब्रिड टमाटर की खेती के लिए जरूरी बातें
एक हेक्टेयर में हाइब्रिड टमाटर के लिए 250-300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है. इस खेती के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. खेतों की उचित देखभाल भी महत्वपूर्ण होती है, जिसमें पौधों को रस्सी या बांस के सहारे चढ़ाना शामिल है.

मल्चिंग विधि में प्लास्टिक शीट का उपयोग मिट्टी को धूप से बचाता है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और पौधों की जड़ों का विकास बेहतर होता है. इसके अलावा, तेज हवाओं और बारिश से पौधों की रक्षा भी होती है.

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