रिटायरमेंट से पहले बढ़ा टकराव: CJI बी.आर. गवई की नाराज़गी से सरकार में हलचल

नई दिल्ली 
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार की उस अर्जी पर कड़ा रुख अपनाया, जिसमें अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण एवं सेवा शर्तें) अधिनियम, 2021 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी पीठ के पास भेजने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि अंतिम सुनवाई के आखिरी चरण में सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी। साथ ही अदालत ने कहा है कि ऐसा लगता है कि सरकार मौजूदा बेंच से बचने की कोशिश कर रही है। यह अधिनियम फिल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण समेत कुछ अपीलीय अधिकरण को खत्म करता है और विभिन्न अधिकरणों के न्यायिक एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति एवं कार्यकाल से जुड़े कई नियमों में बदलाव करता है।
हो चुकी थीं अंतिम दलीलें
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने इस बात को लेकर नाराजगी जताई कि केंद्र अब इस मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजना चाहता है। पीठ ने इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता मद्रास बार एसोसिएशन सहित विभिन्न याचिकाकर्ताओं की ओर से अंतिम दलीलें पहले ही सुन ली हैं।
सुप्रीम कोर्ट बोला- हमें सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी
पीठ ने कहा, 'पिछली तारीख (सुनवाई की) पर, आपने (अटॉर्नी जनरल) ये आपत्तियां नहीं उठाईं और आपने निजी कारणों से सुनवाई टालने का अनुरोध किया। आप पूरी सुनवाई के बाद ये आपत्तियां नहीं उठा सकते… हम केंद्र सरकार से ऐसी तरकीब अपनाने की उम्मीद नहीं करते हैं।' नाराज नजर आ रहे प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'यह ऐसे समय हुआ है जब हमने एक पक्ष की पूरी बात सुन ली है और अटॉर्नी जनरल को निजी कारणों से छूट दी है।'
CJI ने कहा कि ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार मौजूदा पीठ से बचना चाहती है। सीजेआई गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पीठ से अपील की कि वे बड़ी पीठ द्वारा सुनवाई किए जाने के अनुरोध संबंधी केंद्र की अर्जी को गलत न समझें। उन्होंने कहा कि इस पहलू पर शुरुआती आपत्तियां पहले ही केंद्र सरकार द्वारा दाखिल जवाब का हिस्सा हैं। सीजेआई ने कहा, 'अगर हम आपकी यह अर्जी खारिज कर देते हैं, तो हम यह मानेंगे कि केंद्र इस पीठ से बचने की कोशिश कर रहा है। एक पक्ष की दलीलें सुनने के बाद अब हम यह सब नहीं सुनेंगे।'
कोर्ट ने उठाए सरकार की टाइमिंग पर सवाल
अटॉर्नी जनरल ने कहा, 'नहीं, कृपया ऐसा न समझें। यह अधिनियम काफी सोच-विचार के बाद लाया गया था… हम बस इतना कह रहे हैं कि क्या इन मुद्दों की वजह से इस अधिनियम को सीधे रद्द कर देना चाहिए। उसे लागू होने और प्रभाव दिखाने के लिए थोड़ा समय दिया जाए।' न्यायमूर्ति चंद्रन ने कहा कि इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने का मुद्दा पहले नहीं उठाया गया था और इतने देरी से ऐसा नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा, 'कम से कम किसी मंच पर तो आपको यह मुद्दा उठाना चाहिए था… और वह भी इसके लिए एक अर्जी? आपने सुनवाई टालने का अनुरोध इसलिए किया कि आप आकर बहस करना चाहते थे।' अटॉर्नी जनरल ने जब यह गलतफहमी दूर करने की पूरी कोशिश की कि केंद्र सुनवाई टालना चाहता है, तो सीजेआई ने कहा, 'हमारे मन में आपके लिए बहुत इज्जत और सम्मान है।'
अटॉर्नी जनरल को लगाई फटकार
सीजेआई ने कहा, 'आप (अटार्नी जनरल) कृपया (अरविंद) दातार (वरिष्ठ अधिवक्ता, जिन्होंने अधिनियम के खिलाफ दलील पेश की) द्वारा दी गई दलीलों का जवाब देने तक ही सीमित रहें।' पीठ ने कहा, 'जो भी दस्तावेज सामने आए हैं, उनके आधार पर बहस करें। अगर बहस के दौरान हमें लगता है कि बड़ी पीठ के पास मामला भेजने की जरूरत है, तो हम ऐसा करेंगे… लेकिन हम आपकी उस अर्जी के कहने पर ऐसा नहीं करेंगे जो आधी रात को आई है।' शुक्रवार को सुनवाई फिर से होगी। न्यायालय ने 16 अक्टूबर को इस अधिनियम के अलग-अलग प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू की थी।



