उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र से दौरान सदन में सीएजी की रिपोर्ट की गई पेश, वित्तीय अनियमितताओं का हुआ खुलासा
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नई दिल्ली
उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र से दौरान सदन में सीएजी की रिपोर्ट पेश की गई। इस रिपोर्ट में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में बजट की भारी गड़बड़ी सामने आई है, जिसमें करोड़ों रुपये का दुरुपयोग और गलत तरीके से रकम को खर्च करने के मामले सामने आए हैं। इस रिपोर्ट में वन संरक्षण के लिए खर्च किए गए फंड में गड़बड़ी देखने को मिल रही है। रिपोर्ट के अनुसार, वन विभाग द्वारा वन संरक्षण के लिए निर्धारित फंड का इस्तेमाल लैपटॉप, टैबलेट, आईफोन, फ्रीज और ऑफिस के लिए सजावट के सामान खरीदने में किया गया। यह रकम करोड़ों रुपये में थी, जो इस उद्देश्य के लिए निश्चित रूप से अनुचित तरीके से खर्च की गई।
2022 के रिकॉर्ड की जांच में कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां 'कैंपा' (प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण) फंड का इस्तेमाल वनीकरण कार्यों के बजाय अन्य कामों के लिए किया गया। कैंपा को मिलने वाली फंड का उपयोग एक साल के भीतर करना होता है, लेकिन रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि 37 मामलों में इन फंड का उपयोग करने में 8 साल का समय लग गया। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने सड़क, पावर लाइन, वाटर सप्लाई लाइन, रेलवे और ऑफ रोड लाइन के लिए औपचारिक सहमति दी थी, लेकिन इसके बावजूद डिवीजनल फॉरेस्ट अफसर (डीएफओ) की मंजूरी नहीं ली गई थी। 2017 से 2022 के बीच 52 मामलों में डीएफओ की मंजूरी की अनदेखी की गई थी।
सीएजी की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) परियोजना के तहत 56.97 लाख रुपये का दुरुपयोग किया गया, जबकि यह पैसा किसी अन्य उद्देश्य के लिए था। इसके अलावा, अल्मोड़ा कार्यालय में बिना मंजूरी के सोलर फेंसिंग पर 13.51 लाख रुपये खर्च किए गए।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि जन जागरूकता अभियान के लिए निर्धारित 6.54 लाख रुपये का उपयोग मुख्य वन संरक्षक, सतर्कता और कानूनी प्रकोष्ठ के लिए ऑफिस बनाने पर किया गया। इसके अलावा, 13.86 करोड़ रुपये का दुरुपयोग अन्य विभागीय परियोजनाओं में किया गया, जिसमें टाईगर सफारी परियोजनाएं, कानूनी शुल्क, व्यक्तिगत यात्रा और आईफोन, लैपटॉप, फ्रिज, और कार्यालय आपूर्ति जैसी वस्तुओं की खरीद शामिल थी।
सीएजी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2017 से 2022 तक हुए वृक्षारोपण में से करीब 33 फीसदी पौधे ही जिंदा रह पाए। यह वन अनुसंधान संस्थान द्वारा निर्धारित पौधों के जीवित रहने की दर 60-65 फीसदी से कम है। इसके कई परिणाम सामने आए हैं। सबसे पहले, वृक्षारोपण खड़ी और चट्टानी ढलानों पर किया गया, जिसके कारण पेड़ों का जीवित रहना मुश्किल हो गया। इसके अलावा, क्षेत्र में मौजूद बड़े देवदार के पेड़ों ने नए वृक्षारोपण के विकास में रुकावट पैदा की। साथ ही, सुरक्षात्मक उपायों के अभाव में मवेशियों और मानवीय गतिविधियों से भी काफी नुकसान हुआ। इन सबके बावजूद, वनीकरण परियोजनाओं पर 22.08 लाख की राशि खर्च की गई, लेकिन फिर भी अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हो सके।
इस सीएजी रिपोर्ट में 2013 के पहले के ऑडिट का भी हवाला दिया गया है। जिसमें 2006 और 2012 के बीच भी इसी तरह के कुप्रबंधन हुए थे जिसको उजागर किया गया था। इसमें बताया गया है कि तब प्रतिपूरक वनरोपण शुल्क के रूप में 212.28 करोड़ रुपये वसूल नहीं किए गए। वहीं इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि अस्वीकृत परियोजनाओं पर 2.13 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जबकि स्वीकृत सीमा से परे 3.74 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। वहीं प्रधान सचिव के आवास के जीर्णोद्धार, सरकारी क्वार्टरों के रखरखाव और वाहन खरीद जैसे गैर-पर्यावरणीय खर्चों पर 12.26 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।
इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी शामिल है कि बजट बैठकों के लिए लंच और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के लिए 35 लाख रुपये के जश्न समारोह सहित अनावश्यक खर्चों पर 6.14 करोड़ रुपये खर्च किए गए। रिपोर्ट की मानें तो वर्षवार कुल गैर जरूरी खर्च इस प्रकार थे। जिसमें 2019-20 में 2,31,37,184 रुपए, 2020-21 में 7.96 करोड़ से ज्यादा रुपए 2021-22 में 3.58 करोड़ से ज्यादा रुपए और इस तरह कुल मिलाकर 13.86 करोड़ से ज्यादा की राशि गैर जरूरी खर्च किए गए।
रिपोर्ट में सरकारी अस्पतालों में एक्सपायर हो चुकी दवाओं के वितरण पर भी चिंता जताई गई है। रिपोर्ट की मानें तो कम से कम तीन सरकारी अस्पतालों में 34 एक्सपायर हो चुकी दवाओं का स्टॉक था। इनमें से कुछ दवाएं दो साल से पहले ही खराब हो गई थी।