राजनीतिक

भाजपा का टारगेट-370 दक्षिण में विजय से ही पूरा होगा, जानिए सीटों का पूरा लेखा जोखा

नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव 2024 में 'मिशन 370' का टारगेट लेकर चल रही भाजपा ने पूरे जोश में चुनाव की घोषणा से पहले ही शनिवार को 195 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर अन्य दलों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। लेकिन आम जन के मन में सवाल है कि क्या पार्टी 370 सीटों को जीतने का मंसूबा पूरा कर पाएगी? खासकर तब, जब पिछले चुनाव में दक्षिण भारत के तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई थी। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि दक्षिण में विजय के बिना भाजपा का 370 का टारगेट पूरा होना आसान नहीं है क्योंकि उत्तर व पश्चिम के राज्यों में भाजपा अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के आसपास है और वहां सीटों में ज्यादा बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं है।

एक सप्ताह तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक की राजनीति में उठ रही लहरों को समझने का प्रयास किया। कर्नाटक व तेलंगाना को छोडक़र बाकी तीन दक्षिणी राज्यों में पार्टी सीट जीतने लायक जनाधार बढ़ाने की कवायद में जुटी है। नरेंद्र मोदी के नाम, आरएसएस के ग्राउंड वर्क और गठबंधन के भरोसे पार्टी को उम्मीद है कि 'मिशन 370' पूरा करने में इस बार दक्षिण के राज्यों से पर्याप्त सहयोग मिलेगा।

दक्षिणी राज्यों में कमजोर हालत

राज्यकुल सीटेंप्राप्त सीटेंवोट प्रतिशत
कर्नाटक282551.38%
तेलंगाना17419.65%
तमिलनाडु3903.66%
आंध्र प्रदेश2500.98%
केरल20013.00%

 

अन्य राज्यों में मजबूत पकड़

राज्यकुल सीटेंप्राप्त सीटेंवोट प्रतिशत
राजस्थान252459.07%
मध्य प्रदेश292858.00%
गुजरात262662.21%
उत्तरप्रदेश806250.00%
बिहार403953.17%
महाराष्ट्र484151.34%

कुल – 248 – 220

बंगाल, ओडिशा और पंजाब में गुंजाइश

पिछले चुनाव में भाजपा ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन किया था। बंगाल में 42 में से 18 और ओडिशा की 21 में से 8 सीटें जीती थीं। पार्टी के पास दोनों राज्यों में सीटें बढ़ाने की गुंजाइश है। पंजाब में पार्टी को 13 में से सिर्फ दो सीटें मिली थीं। यहां भी सीटें बढ़ाने की गुंजाइश है।
 

कर्नाटक में सीटें बचाना जरूरी

दक्षिण के प्रवेश द्वार कर्नाटक में पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया था। हालांकि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को सत्ता गंवानी पड़ी। इस बार लोकसभा चुनाव में जनता दल (एस) से तालमेल कर पार्टी अपनी पिछली सफलता दोहराने के लिए प्रयासरत है।
 

केरल में चर्च के सहारे आस

कांग्रेस और वामपंथी दलों के प्रमुख वाला केरल भाजपा के लिए कमजोर कड़ी रहा है। इस बार पार्टी ईसाई मतों को अपनी तरफ मोडऩे के लिए चर्च का सहारा ले रही है। कैथोलिक चर्च के पादरी भाजपा के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। हिंदू मतों को बनाए रखते हुए ईसाई मतों को जोडऩा पार्टी की नई रणनीति है।
 

तमिलनाडु में छोटे दलों से उम्मीद

तमिलनाडु में एनडीए से अन्नाद्रमुक के अलग होने के बाद भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए जी.के. वासन की पार्टी तमिल मनिला कांग्रेस के साथ पहला गठबंधन बनाया है। वासन एनडीए को राज्य में और मजबूत करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों को साथ जोडऩे की जोर आजमाइश कर रहे हैं। माना जा रहा है कि वह पीएमके और डीएमडीके के आलाकमानों से लगातार संपर्क में हैं।

उन्होंने राष्ट्रीय विजन के साथ सोच रखने वाले राजनीतिक दलों को साथ आने का आह्वान किया है। टीएमसी से पहले आइजेके ने एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लडऩे की घोषणा की है। साथ ही भाजपा ने ए.सी. शनमुगम की न्यू जस्टिस पार्टी के साथ भी गठबंधन पर मुहर लगा दी है। ऐसे मे तमिलनाडु में भाजपा को छोटे दलों से गठबंधन कर सीटें जीतने की उम्मीद है।
 

आंध्र प्रदेश में गठजोड़ पर असमंजस

आंध्र प्रदेश में पिछली बार खाली हाथ रही भाजपा की नजर सत्तारुढ़ दल वाईएसआर कांग्रेस पर है तो चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी पर भी। पवन कल्याण की जनसेना भी नरेंद्र मोदी को समर्थन देने का ऐलान कर चुकी है।
 

तेलंगाना में कैसे लगे नैया पार

पिछले लोकसभा चुनाव में चार सीटें जीतने वाली भाजपा को तीन महीने पहलेहुए विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। सवाल उठना स्वाभाविक है कि तेलंगाना में पार्टी अपनी पिछली सफलता के ग्राफ को कैसे बढ़ा पाएगी?
 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2 माह में 10 दौरें

केरल – 3 जनवरी, 17 जनवरी, 27 फरवरी
तमिलनाडु – 3 जनवरी, 21 जनवरी, 27 फरवरी, 4 मार्च
कर्नाटक – 20 जनवरी
आंध्र प्रदेश – 16 जनवरी
तेलंगाना – 4 मार्च

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