भोपालमध्य प्रदेश

भगोरिया आदिवासी नृत्य, गोंड आदिवासी चित्रकला और नर्मदा परिक्रमा को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की राष्ट्रीय सूची में किया शामिल

मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड की पहल

यूनेस्को की नोडल एजेंसी संगीत नाटक अकादमी ने राष्ट्रीय सूची में किया शामिल  

भोपाल

मध्य प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के प्रयासों को सफलता प्राप्त हुई है। मध्यप्रदेश टूरिज्म बोर्ड की पहल पर यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल आर्गेनाइजेशन (यूनेस्को) की नोडल एजेंसी संगीत नाटक अकादमी ने मध्य प्रदेश की तीन विरासतों को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की राष्ट्रीय सूची में सम्मिलित किया है। इन विरासतों में भगोरिया आदिवासी नृत्य, गोंड आदिवासी चित्रकला और नर्मदा परिक्रमा हैं। आगामी वर्षों में यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की अंतर्राष्ट्रीय सूची में इन्हें सम्मिलित किया जा सकता है। प्रमुख सचिव पर्यटन एवं संस्कृति और प्रबंध संचालक टूरिज्म बोर्ड श्री शिव शेखर शुक्ला ने इस उपलब्धि पर हर्ष जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मार्गदर्शन में हम मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासतों को विश्व पटल पर पहचान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं। इन्हीं प्रयासों के फलस्वरूप यह उपलब्धि हासिल हुई है। यह प्रदेश के लिए गौरवपूर्ण उपलब्धि है। सूची में नामांकित होने से यह अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र बनेंगे।

यह होती हैं अमूर्त सांस्कृतिक विरासत
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में वे परंपराएं, प्रथाएं, ज्ञान और कौशल शामिल हैं, जो हमारे पूर्वजों से विरासत में मिले हैं और भविष्य की पीढ़ियों को दिए गए हैं। मूर्त विरासतों में स्मारक या भौतिक कलाकृतियां शामिल होती हैं, वहीं अमूर्त सांस्कृतिक विरासत एक संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्तियों को संदर्भित करती है। इसमें मौखिक परंपराएं, कलाएंं, सामाजिक अनुष्ठान, उत्सव के कार्यक्रम, प्रकृति के बारे में ज्ञान और पारंपरिक शिल्प शामिल होते हैं।

मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड ने किया था आवेदन
भारत के किसी भी हिस्से से किसी भी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की मान्यता के लिए आवेदन यूनेस्को की नोडल एजेंसी संगीत नाटक अकादमी को प्रस्तुत किए जाते हैं। यह एजेंसी राष्ट्रीय सूची को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होती है। मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की राष्ट्रीय सूची में शामिल करने के लिए मध्य प्रदेश के भगोरिया आदिवासी नृत्य, नर्मदा परिक्रमा और गोंड आदिवासी चित्रकला इंटेजिबल कल्चरल हेरीटेज (आईसीएच) को नामांकित करने के लिए आवेदन विगत वर्ष 2024 में किया था।

गोंड आदिवासी चित्रकला, पाटनगढ़
पाटनगढ़ की गोंड आदिवसी चित्रकला, कला का ऐसा रूप से जो स्थानीय गोंड जनजाति द्वारा 1400 वर्षों से अधिक समय से सहेजी गई है। यह कला प्रकृति और संस्कृति के बीच गहरे संबंधों को दर्शाती है। दीवार के भित्त चित्र हों या जीवन शैली के उत्पाद, इन सभी को जीवंत रंगों, जटिल रचनाओं और मनमोहक अभिव्यक्ति के माध्यम से तैयार किया जाता है। चूंकि यह समुदाय प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है, इसलिए उनसे प्रेरणा लेकर वे इसे चित्रकला में प्रदर्शित भी करते हैं। परंपरागत रूप से यह कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचती हैं। इन चित्रकलाओं में जहां पेड़–पौधों को कैनवास पर उकेरा जाता है वहीं पशुओं के साथ–साथ आकाश, सूर्य, चंद्रमा आदि का भी सुंदर चित्रण देखने को मिलता है। आकार और प्रयोग में लाई गई जटिलताओं के आधार पर इन्हें बनाने में 2 दिन से लेकर 2 महीने तक का समय लगता है। कई बार बड़ी कलाकृतियों को समूहों में तैयार किया जाता है।  
 
नर्मदा परिक्रमा
यह एक पवित्र आध्यात्मिक तीर्थयात्रा है, जिसमें देवी के रूप में पूजनीय मां नर्मदा नदी के चारों ओर 3500 किलोमीटर नंगे पैर परिक्रमा की जाती है। यह यात्रा भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है। यह ऐतिहासिक घाटों, मंदिरों और पवित्र शहरों से होकर गुजरती है। नर्मदा परिक्रमा की यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसका वर्णन महाकाव्यों और प्राचीन पवित्र ग्रंथों में मिलता है। यह परिक्रमा छह से आठ महीनों की अवधि में की जाती है। नर्मदा का तट ध्यान और तपस्या की भूमि भी रहा है, जिसे सांस्कृतिक रूप से कई महान ऋषियों और संतों की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। श्रद्धालु चलते समय लगातार मां नर्मदा की स्तुति करते हुए “नर्मदे हर!” का जाप करते हैं। यात्रा अमरकंटक स्थित मां नर्मदा के उद्गम से शुरू होकर पुन: उस बिंदु पर वापस आने के बाद पूरी मानी जाती है। तीर्थयात्रा पूरी होने के बाद, भक्तों को ओंकारेश्वर मंदिर जाना होता है जो भगवान शिव को समर्पित है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।  

भगोरिया आदिवासी नृत्य
भगोरिया आदिवासी नृत्य और महोत्सव भील जनजाति के बीच खुशी, एकता और परंपरा का एक जीवंत उत्सव है। भगोरिया आदिवासी नृत्य भील समुदाय के भगोरिया त्यौहार का एक अभिन्न अंग है, जो होली के त्यौहार से सात दिन पहले मनाया जाता है। यह त्यौहार पूरे समुदाय व रिश्तेदारों से मिलने के साथ–साथ आनंद से सराबोर होने का अवसर होता है। यह त्यौहार फसल कटाई के मौसम का भी प्रतीक है। भील समुदाय के साथ-साथ भीलाला और पटेलिया जैसे स्थानीय आदिवासी समुदाय भी यह त्यौहार मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह त्यौहार भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करने की परंपरा के रूप में शुरू हुआ था। गांव भगोर में भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित एक मंदिर भी मौजूद है (ऐसा माना जाता है कि यह नाम शिव और पार्वती के लिए एक और नाम भाव-गौरी से लिया गया है)। इस दौरान सभी गांवों के निवासी अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनकर पैदल आते हैं। पुरुष धोती और सिर पर साफा पहनते हैं। वे अपने पारंपरिक हथियार और कमर में घंटी की बेल्ट भी पहनते हैं। महिलाएं दुपट्टे के साथ घाघरा और पोल्की पहनती हैं। जनजातीय पुरुष और महिलाएं चांदी के पारंपरिक आभूषण पहनते हैं। समूह पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों जैसे मांदर, कुंडी, पीतल की थाली और बांसुरी का वादन करते हुए समूह नृत्य करते हैं।

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