राजनीतिक

युवा कांग्रेस चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप: बीजेपी ने कहा, कांग्रेस ने अपने यूथ चुनाव में वोट चोरी की

भोपाल 

मध्यप्रदेश में भारतीय युवा कांग्रेस के चुनाव इन दिनों सुर्खियों में हैं. प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट जबलपुर के विधायक और पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया के बेटे यश घनघोरिया को मिले हैं. 6 नवंबर को वोटों की गिनती हुई थी, जिसमें यश को 3 लाख 13 हजार 730 वोट मिले. दूसरे नंबर पर भोपाल के अभिषेक परमार को 2 लाख 38 हजार 780 वोट और तीसरे नंबर पर देवेन्द्र सिंह दादू को कम वोट मिले, लेकिन गिनती के बाद भी कई नेता खुश नहीं हैं. वे कह रहे हैं कि चुनाव में बड़ी धांधली हुई है.

शिकायतें पहुंचीं दिल्ली तक
चुनाव की पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं. कई युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय प्रभारी मनीष शर्मा से शिकायत की है कि वोटिंग में गड़बड़ी हुई. 9 नवंबर को राहुल गांधी ने एक कार्यक्रम में SIR (सिस्टेमेटिक वोटर इंटरफेस फॉर रजिस्ट्रेशन) को वोट चोरी का हथियार बताया था. उसी दिन भाजपा के मंत्री विश्वास सारंग ने कांग्रेस पर तंज कसा कि “खुद यूथ कांग्रेस के चुनाव में वोट चोरी की है.” टॉप-3 उम्मीदवारों का 9 नवंबर को दिल्ली में इंटरव्यू हुआ था. वहां यश घनघोरिया, अभिषेक परमार और देवेन्द्र सिंह दादू पहुंचे, लेकिन अभिषेक और देवेन्द्र समेत कई जिलों के कार्यकर्ताओं ने फिर शिकायत की. इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा रोक दी गई. अब आज (12 नवंबर) दिल्ली में शिकायतों पर बैठक के बाद फैसला हो सकता है.

जिम्मेदार नेता मुंह छिपा रहे
धांधली के आरोपों पर प्रदेश चुनाव अधिकारी मुकुल गुप्ता और राष्ट्रीय प्रभारी मनीष शर्मा से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया. फोन उठाया नहीं और मैसेज का भी रिप्लाई नहीं किया.

15 लाख से ज्यादा युवाओं ने भरी मेंबरशिप
इस बार यूथ कांग्रेस की सदस्यता पूरी तरह ऑनलाइन थी. 18 अप्रैल को चुनाव की घोषणा के साथ ही मेंबरशिप अभियान शुरू हुआ. हर नए सदस्य को 50 रुपए फीस देनी थी. 20 जून से 19 जुलाई तक चले अभियान में कुल 15 लाख 37 हजार 527 युवाओं ने फॉर्म भरे. इनमें से 63 हजार 153 लोगों ने फीस नहीं जमा की. फीस के साथ 14 लाख 74 हजार 374 मेंबर वैलिड हुए, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में मेंबरशिप के बाद भी 56% यानी करीब 6 लाख 78 हजार मेंबरशिप रिजेक्ट कर दी गई. अंत में सिर्फ 6-7 लाख लोग ही वोट डाल पाए. प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में तो सिर्फ 9 हजार 216 लोगों ने वोट ही नहीं डाला.

20 लाख खर्च किए, मिले सिर्फ 4500 वोट!
राजगढ़ जिले के शिव दांगी ने बताया कि उन्होंने 17 हजार 490 युवाओं की मेंबरशिप कराई. इसके लिए अलग-अलग टीमें बनाईं. मेंबरशिप फीस के लिए अपने अकाउंट से 10 लाख रुपए दिए. दूसरे खर्चे मिलाकर कुल 20-22 लाख रुपए लगे. शुरुआत में 43 हजार मेंबरशिप दिख रही थीं, लेकिन जिले में सिर्फ 10 हजार वैलिड वोट बचे. 13 हजार वोट होल्ड कर दिए गए.
शिव दांगी कहते हैं, “मैंने हिसाब लगाया था कि 10 हजार वैलिड वोटों में मुझे 7 हजार और होल्ड 13 हजार में से करेक्शन कराकर 3300 और जोड़कर कुल 10 हजार 300 वोट मिलने चाहिए थे. लेकिन रिजल्ट में सिर्फ 4500 वोट दिखाए गए.” उन्होंने मनीष शर्मा, ZRO और पार्टी हाईकमान को ईमेल से शिकायत की है. बोले, “अगर संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो हम कोर्ट जाएंगे.”

उम्र सीमा का भी उल्लंघन
भाजपा मंत्री विश्वास सारंग ने बड़ा आरोप लगाया कि यूथ कांग्रेस में उम्र सीमा 18 से 35 साल थी, फिर भी 44 साल के संतोष सिंह (चंदेरी, अशोक नगर) को वोटर बना लिया गया. इसी तरह अंजुम खान की उम्र वोटर लिस्ट में 36 साल दिख रही है, फिर भी मेंबर बना दिया. सारंग बोले, “कांग्रेस में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं है.”

कमलनाथ-सिंघार गुट की जीत
धांधली के सारे आरोपों के बावजूद परिणाम देखें तो कमलनाथ और विजय सिंह सिंघार गुट का पूरा दबदबा रहा. यश घनघोरिया प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं. जिला अध्यक्षों में सबसे बड़ी जीत उज्जैन में हुई, जो सीएम डॉ मोहन यादव का गृह जिला है. वहां अर्पित यादव को 14 हजार 631 वोट मिले और सबसे बड़े अंतर से जीते.

अब क्या होगा?
आज दिल्ली में हाईकमान शिकायतों की सुनवाई कर रहा है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो यश घनघोरिया का नाम औपचारिक रूप से घोषित हो जाएगा. लेकिन अगर शिकायतें सही पाई गईं तो पूरा चुनाव रद्द भी हो सकता है या दोबारा गिनती हो सकती है. युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता कह रहे हैं कि इतने बड़े पैमाने पर पैसे खर्च करने के बाद भी अगर वोट गायब हो जाएं तो भरोसा कैसे बचेगा? दूसरी तरफ कांग्रेस कह रही है कि सारी प्रक्रिया पारदर्शी थी और भाजपा बेवजह शोर मचा रही है. फिलहाल मध्यप्रदेश की सियासत में यूथ कांग्रेस चुनाव सबसे गर्म मुद्दा बना हुआ है. देखना यह है कि दिल्ली से क्या फैसला आता है और क्या वाकई 15 लाख युवाओं का भरोसा बरकरार रह पाता है या नहीं.

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