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AI बनेगा टीबी का दुश्मन! अब पहले ही पता चलेगा खतरा, मौत का आंकड़ा होगा कम

नई दिल्ली  
दुनिया में फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों पर होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इस बार एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि सामने आई। डेल्फ्ट इमेजिंग और इपकॉन ने मिलकर CAD4TB+ नाम का नया AI आधारित प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है। यह प्लेटफॉर्म पहली बार टीबी की पहचान, निगरानी, हॉटस्पॉट खोजने और भविष्य में संक्रमण बढ़ने की संभावना का अनुमान, सब कुछ एक ही सिस्टम में उपलब्ध कराता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक टीबी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में बेहद अहम साबित हो सकती है।

टीबी की पहचान अभी भी बड़ी चुनौती
WHO की ताजा रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2024 में दुनिया भर में 1 करोड़ 7 लाख लोग टीबी से संक्रमित हुए, जबकि 12 लाख से अधिक लोगों की जान गई। सबसे चिंताजनक बात यह है कि लगभग 24 लाख मरीजों की पहचान ही नहीं हो पाती, खासकर अफ्रीका और ग्रामीण इलाकों में, जहां जांच सुविधाएं सीमित हैं। कई लोग स्क्रीनिंग से बाहर रह जाते हैं और संक्रमण फैलता रहता है। CAD4TB+ इसी कमी को दूर करने के लिए बनाया गया है, जो AI एक्स-रे तकनीक और डेटा एनालिटिक्स को जोड़कर बताता है कि किस इलाके में टीबी अधिक है, कम है या बढ़ने की संभावना है।
 
विशेषज्ञों की राय
डेल्फ्ट इमेजिंग के CEO गुइडो गीर्ट्स ने बताया कि कठिन इलाकों में रहने वाले लोगों तक जांच पहुंचाना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि अब तक CAD4TB की मदद से 5.5 करोड़ से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग हो चुकी है और नया वर्जन CAD4TB+ इस प्रक्रिया को और तेज, आसान और सटीक बनाएगा। इपकॉन की CEO कैरोलाइन वैन काउवेलर्ट के अनुसार, यह सिस्टम फील्ड लेवल की जांच को राष्ट्रीय स्तर की स्वास्थ्य योजना से जोड़ने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि अब हर एक्स-रे सिर्फ एक मरीज की जांच नहीं, बल्कि पूरे देश में टीबी की स्थिति को समझने का अहम डेटा बन जाएगा।
 
कई देशों में मिले उपयोगी परिणाम
CAD4TB तकनीक पहले से ही 90 से ज्यादा देशों में इस्तेमाल की जा रही है।
    नाइजीरिया में इसने टीबी हॉटस्पॉट खोजकर ज्यादा मरीजों की पहचान की।
    दक्षिण अफ्रीका में एआई की वजह से जांच की लागत कम हुई और शुरुआती चरण में मरीज मिल सके।
    120 से अधिक वैज्ञानिक अनुसंधान इस तकनीक को समर्थन दे चुके हैं।
इस नई एआई तकनीक से उम्मीद है कि टीबी की पहचान और तेजी से होगी, इलाज जल्दी शुरू होगा और इससे होने वाली मौतों में भी कमी आ सकती है।

 

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