पौष माह में जरूर करें ये एक आसान उपाय, भगवान भास्कर की बनी रहेगी कृपा, सुख-समृद्धि से भर जाएगा घर
हिंदू धर्म में हर माह का अपना विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह खत्म हो चुका है इसके बाद 27 दिसंबर 2023 से पौष माह की शुरुआत हो चुकी है, जिसका समापन 11 जनवरी 2023 को होगा। पौष माह में सूर्य देव का पूजन और सूर्य चालीसा पाठ करने का विशेष महत्व है। ऐसा करने से घर में कभी भी धन दौलत की कमी नहीं होती है साथ ही साथ उम्र भी बढ़ती है। इसी के साथ आज हम आपको इस लेख के द्वारा सूर्य देव की पूजा और चालीसा के बारे में बताएंगे, तो चलिए जानते हैं।
कैसे करें सूर्य देव की पूजन
पौष माह के प्रत्येक रविवार तांबे के लोटे में जल, लाल चंदन और लाल रंग के फुल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। इस दौरान ओम सूर्याय नमः मंत्र का जाप भी करें। रविवार के दिन भगवान सूर्य देव के लिए व्रत रखें पूजा के बाद तिल, चावल की खिचड़ी का भोग लगाएं।
पौष महीने में इन कामों को करना होता है शुभ
- पौष माह सूर्य देव को समर्पित है. इसलिए इस महीने सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए, सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए, सूर्य मंत्र, चालीसा और आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए.
- यदि आप विशेष मंत्रों का जाप करने में सक्षम न हों तो कम से कम 'ऊँ हीं ह्रीं सूर्याय नम:' मंत्र का जाप जरूर करें.
- पौष में पूरे एक महीने तक प्रतिदिन तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर इसमें सिंदूर, लाल फूल और अक्षत डालकर सूर्य को अर्घ्य दें. इससे भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त होगी.
- भगवान भास्कर के साथ ही पौष माह में भगवान विष्णु की भी पूजा करना फलदायी होता है. इसलिए इस माह विष्णु जी की पूजा जरूर करें.
- पौष महीने में नियमित रूप से गीता पाठ और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए.
- पौष महीने में किए गए दान से बहुत पुण्य मिलता है. इसलिए इस महीने यथाशक्ति जरूरतमंदों और ब्राह्मणों में दान-दक्षिणा करें.
पौष महीने में इन कामों को करना होता है अशुभ
- किसी भी नए काम की शुरुआत के लिए पौष का महीना शुभ नहीं माना जाता है. इसलिए इस माह नए काम, नया व्यवसाय, नए घर का निर्माण संबंधित कार्य न करें. इसके साथ ही इस महीने नया वाहन और मकान की खरीदना भी नहीं चाहिए. क्योंकि पौष में ही खरमास होता है.
- पौष महीने में शादी-विवाह, मुंडन, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, सगाई आदि भी नहीं करना चाहिए. क्योंकि इन शुभ-मांगलिक कार्यों के लिए पौष में कोई शुभ मुहूर्त नहीं होते हैं.
- खाने-पीने की कुछ चीजें होती हैं, जिनका सेवन पौष माह में नहीं करना चाहिए. इस माह मांस-मदिरा, उड़द की दाल, मसूर की दाल का सेवन न करें. साथ ही शक्कर के बजाय आप गुड़ का अधिक सेवन करें.
सूर्य चालीसा पाठ
॥ दोहा ॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
॥ चौपाई ॥
जय सविता जय जयति दिवाकर!। सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!। सविता हंस! सुनूर विभाकर॥
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै।दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥
नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन। रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है। प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते। रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत। कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित। भास्कर करत सदा मुखको हित॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे। रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा। तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर। त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन। भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर। कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा। गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥
विवस्वान पद की रखवारी। बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्रांशु सर्वांग सम्हारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे॥
अस जोजन अपने मन माहीं। भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै। जोजन याको मन मंह जापै॥
अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके। धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा। किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों। दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी। हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन। मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥
भानु उदय बैसाख गिनावै। ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता। कातिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं। पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं॥
॥ दोहा ॥
भानु चालीसा प्रेम युत,गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध,होंहिं सदा कृतकृत्य॥