बिज़नेस

चीन ने सेमीकंडक्टर चिप की लड़ाई में निकाला नया हथियार, दुनिया में मच सकता है हाहाकार

नई दिल्ली
 सेमीकंडक्टर चिप की सप्लाई चेन को लेकर अमेरिका और चीन के बीच लड़ाई तेज हो गई है। चिप में काम आने वाले दो एलिमेंट्स जर्मेनियम और गैलियम के प्रॉडक्शन में चीन का वर्चस्व है और उसने इनका एक्सपोर्ट पूरी तरह बंद कर दिया है। पिछले साल गैलियम के ग्लोबल प्रॉडक्शन में चीन की 98 परसेंट और रिफाइंड जर्मेनियम में 68 परसेंट हिस्सेदारी थी। अमेरिका और दूसरे देशों को गैलियम और जर्मेनियम की इंडिपेंडेंट सप्लाई चेन बनाने के लिए उन्हें 20 अरब डॉलर से अधिक निवेश की जरूरत होगी। समस्या यह है कि इसे रातोंरात इसे विकसित नहीं किया जा सकता है बल्कि इसमें कई साल का समय लग सकता है।

चीन के एक्सपोर्ट पर बैन लगाने के बाद अगस्त में उसने इसका कोई निर्यात नहीं किया। हालांकि उसका कहना है कि उसने कुछ एक्सपोर्ट्स को मंजूरी दी है लेकिन चीन की पाबंदी इस बात की चेतावनी है कि वह भविष्य में इस पावरफुल हथियार का इस्तेमाल कर सकता है। अमेरिका, यूरोप और जापान ने चीन को चिप्स और चिपमेंकिग इक्विपमेंट की बिक्री पर पाबंदी लगा दी है। ये देश चीन को इस अहम टेक्नोलॉजी से दूर रखना चाहते हैं। उन्हें डर है कि चीन इनका इस्तेमाल सैन्य जरूरतों के लिए कर सकता है। जानकारों का कहना है कि अगर चीन एक्सपोर्ट पर लगाम लगाता है तो इससे सप्लाई चेन में मुश्किल होगी।

गैलियम और जर्मेनियम की अहमियत
हालांकि ग्लोबल ट्रेड में गैलियम और जर्मेनियम की हिस्सेदारी बहुत कम है लेकिन वे इंटरनेशनल सेमीकंडक्टर, डिफेंस, इलेक्ट्रिकल वीकल और कम्युनिकेशंस इंडस्ट्रीज के सप्लाई चेन में इनकी अहम भूमिका है। पिछले एक दशक से इनके उत्पादन में चीन का दबदबा है। गैलियम से मुलायम सिल्वरी मेटल है जिसे चाकू की मदद से आसानी से काटा जा सकता है। इसका इस्तेमाल ऐसे कंपाउंड बनाने में होता है जिनका इस्तेमाल मोबाइल फोन और सैटेलाइट कम्युनिकेशन में रेडियो फ्रीक्वेंसी चिप्स बनाने में होता है। दूसरी ओर जर्मेनियम एक हार्ड, ग्रे-वाइट मेटालॉयड है जिसका इस्तेमाल ऐसे ऑप्टिकल फाइबर्स बनाने में होता है जो लाइट और इलेक्ट्रॉनिक डेटा ट्रांसमिट कर सकते हैं।

समस्या यह है कि ये दोनों नेचर में स्वतंत्र रूप से नहीं पाए जाते हैं। एल्यूमीनियम, जिंक और कॉपर जैसी कॉमन धातुओं की माइनिंग में बायप्रॉडक्ट्स के रूप में ये निकलते हैं। इसकी प्रोसेसिंग बेहद महंगी, तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण, एनर्जी इंटेंसिव और पॉल्यूशन फैलाने वाली होती है। चीन इनके प्रॉडक्शन की कॉस्ट काफी कम करने में सफल रहा है। दुनिया के दूसरे देश उसके मुकाबले कहीं नहीं ठहरते हैं। यही वजह है कि इनमें उसका दबदबा है। 2013 से 2016 के बीच कजाकस्तान, हंगरी और जर्मनी ने गैलियम का प्रॉडक्शन बंद कर दिया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button