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नीति आयोग का सुझाव: बात-बात पर लाइसेंस और निरीक्षण राज को खत्म किया जाए

नई दिल्ली

देश में व्यापार शुरू करना और चलाना अक्सर कागज़ी झंझट, परमिट, लाइसेंस और अचानक आने वाले निरीक्षणों (Inspection) की वजह से लोगों के लिए बेहद मुश्किल हो जाता है. इसी परेशानी को खत्म करने के लिए नीति आयोग (NITI Aayog) की एक उच्च स्तरीय कमिटी ने बड़ा कदम सुझाया है, जो इंस्पेक्शन राज का खात्मा कर देगा.

नीति आयोग की प्लानिंग कहती है कि लोगों और कारोबारियों पर भरोसा दिखाते हुए नियमों को आसान बनाया जाए, ताकि व्यापार बढ़े, सरकारी दखल कम हो और देश की अर्थव्यवस्था अधिक मजबूत बन सके. अब जानते हैं कि असल में इस प्रस्ताव में क्या है और लोगों को इससे क्या फायदा होगा?

नीति आयोग की एक उच्च स्तरीय समिति ने देश के नियम-कानूनों में बड़ा सुधार लाने की सलाह दी है. इस कमेटी का नेतृत्व सदस्य और पूर्व कैबिनेट सचिव राजीव गौबा (Rajiv Gauba) कर रहे हैं. समिति का मानना है कि देश में वर्षों से चली आ रही लाइसेंस, परमिट और NOC की भारी-भरकम व्यवस्था अब लोगों के लिए बोझ बन चुकी है. इसलिए रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि इन अनावश्यक मंज़ूरियों को काफी हद तक खत्म किया जाए और इंस्पेक्टर राज का अंत हो. उनका कहना है कि जहां कानून स्पष्ट रूप से मना नहीं करता, वहां अनुमति की ज़रूरत भी नहीं होनी चाहिए.
छोटे-मोटे काम बिना अनुमति लिए हों

हमारी सहयोगी वेबसाइट मनीकंट्रोल ने इस पर एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट छापी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, समिति ने यह भी साफ किया कि लाइसेंस तभी मांगा जाए जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा, जन स्वास्थ्य, पर्यावरण या बहुत बड़े सार्वजनिक हित से जुड़ा हो. छोटे-मोटे कामों के लिए पहले से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होनी चाहिए. इससे आम लोगों और छोटे कारोबारियों पर पड़ने वाला समय और पैसों का बोझ काफी कम होगा.

रिपोर्ट में बताया गया कि रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया भी बिल्कुल आसान होनी चाहिए. यह केवल रिकॉर्ड रखने या डेटा मैनेजमेंट के लिए हो, न कि लोगों को रोके रखने के लिए. खुद से रजिस्ट्रेशन (Self-registration) करने का विकल्प सामान्य रूप से उपलब्ध होना चाहिए, और लाइसेंस की वैधता सामान्य तौर पर हमेशा के लिए (perpetual) हो. केवल खास परिस्थितियों, जैसे सुरक्षा या पर्यावरण, में ही 5 से 10 साल की वैधता रखी जा सकती है.
अधिकारी अचानक फैक्ट्री में पहुंचकर जांच न करें

इंस्पेक्शन को लेकर समिति का सुझाव सबसे अलग और आधुनिक है. उनका कहना है कि अब अधिकारी अचानक दुकान या फैक्ट्री में पहुंचकर जांच नहीं करें. इसके बजाय कंप्यूटर आधारित सिस्टम से रैंडम सिलेक्शन की मदद ली जाए, और जांच का काम एक्रेडिटेड थर्ड पार्टी को दिया जाए, ताकि पारदर्शिता बनी रहे.

रिपोर्ट ने यह भी आग्रह किया कि सरकार साल में एक तय तारीख रखे, जिस दिन नियमों में बदलाव लागू हों. इससे कारोबारियों को अचानक नियम बदलने से बचाया जा सके. नई नीतियों को लागू करने से पहले सभी हितधारकों से बातचीत करना और उन्हें तैयारी का समय देना भी जरूरी बताया गया है.

एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अब सरकार सभी नियमों का रेगुलेटरी इम्पैक्ट असेसमेंट करेगी. इसका सीधा मतलब है कि किसी नए नियम को लागू करने से पहले यह देखा जाएगा कि उसे मानने में कारोबारियों पर कितना खर्च आएगा और सरकार को उसे लागू कराने में कितनी मेहनत और लागत लगेगी. इससे अनावश्यक और महंगे नियम बनने से बचा जा सकेगा.
सजा को लेकर भी बदलावों का सुझाव

सजा को लेकर भी बड़े बदलाव सुझाए गए हैं. समिति का स्पष्ट कहना है कि “छोटी तकनीकी गलतियों पर जेल या आपराधिक सजा नहीं होनी चाहिए.” जेल या भारी जुर्माना केवल उन्हीं मामलों में हो जहां मानव स्वास्थ्य, राष्ट्रीय सुरक्षा या पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो सकता है. इसके अलावा सभी पुराने कानूनों में मौजूद सजा संबंधी धाराओं की आधुनिक जरूरतों के अनुसार समीक्षा की जानी चाहिए.

सबसे अहम बदलाव है कि पूरी व्यवस्था का डिजिटल रूप से सक्षम होना. यानी सभी दस्तावेज़ ऑनलाइन जमा हों, विभागों के बीच डेटा साझा किया जा सके, और एक बार दिया गया डेटा दोबारा न मांगा जाए. इसके लिए मंत्रालयों को API जारी करनी होंगी, ताकि सरकारी डेटाबेस आसानी से एक-दूसरे से जुड़ सकें.

रिपोर्ट के अनुसार, इन सभी सुझावों का मकसद सरकार और नागरिकों के बीच विश्वास बढ़ाना है. समिति का दावा है कि अगर इन सुधारों को अपनाया गया तो देश में कारोबार करना पहले से कहीं आसान हो जाएगा, पारदर्शिता बढ़ेगी और आधुनिक नियामक ढांचा तैयार होगा जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मजबूत आधार देगा.

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