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प्रोसेस्ड फूड: रोज़मर्रा की थाली में छिपा धीमा ज़हर, बढ़ा रहे मोटापा और 12 गंभीर बीमारियों का खतरा

आधुनिक जीवनशैली ने मोटापे की ऐसी चुनौती दी है, जिससे पार पार पाना आसान नहीं है। इससे डायबिटीज, हार्ट, लिवर और किडनी जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ रहा है। लांसेट ने इसे लेकर अध्ययन की एक श्रृंखला प्रकाशित की है, जिसमें दो बातें स्पष्ट हैं, पहली प्रसंस्करित भोजन (अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड) की प्रचुरता ने हमारे स्वस्थ भोजन के विकल्पों को सीमित कर दिया है और दूसरी, स्वस्थ आहार के लिए व्यक्तिगत से लेकर नीतिगत स्तर तक जागरूक होने की अब अनिवार्यता बढ़ गई है।

यह जानते हुए कि इस तरह के भोजन सेहत के लिए नुकसानदेह हैं, फिर भी चिप्स, बिस्किट, पैकेज्ड पेय, इंस्टैंट नूडल्स जैसे तमाम अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ हमारी रसोई में जगह बढ़ाते जा रहे हैं। भारत में मोटापा और डायबिटीज बढ़ाने में अल्ट्रा प्रोसेस्ड भोजन सिर्फ एक वजह भर नहीं है, बल्कि प्रमुख कारण हैं। लांसेट के अनुसार, अगर गैर- संचारी रोगों की चपेट में आने से बचना है, तो अल्ट्रा प्रोसेस्ड भोजन को लेकर तुरंत चेतने की आवश्यकता है।

जानें अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के बारे में
इस तरह के खाद्य पदार्थों में पांच से अधिक ऐसे घटक होते हैं, जो रसोई में नहीं पाए जाते, जैसे- प्रिजर्वेटिव एडिटिव, डाइ, स्वीटनर और इमल्सीफायर। बिस्किट, पेस्ट्री, सास, इंस्टैंट सूप, नूडल्स, आइसक्रीम, ब्रेड, फिजी ड्रिंक्स जैसे अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाद्य कई सारे घरों में लोग रोज प्रयोग करते हैं। अनेक सर्वे बताते हैं कि बड़ी संख्या में लोग अब फाइबर और प्रोटीन के बजाय अत्यधिक शुगर, नुकसानदेह वसा और नमक का सेवन करने लगे हैं। खास बात हैं कि पैकेटबंद और अत्यधिक कैलोरी वाले इस तरह के भोजन छोटे शहरों और गांवों तक पहुंच चुके हैं।

12 तरह की बीमारियों का कारण है अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड
लांसेट में प्रकाशित इस समीक्षात्मक अध्ययन में 43 वैश्विक विशेषज्ञों ने 104 अध्ययनों के आधार पर प्रसंस्करित भोजन के दुष्प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया है। इससे 12 तरह की संभावित समस्याओं को चिह्नित किया गया है, जिसमें टाइप-2 डायबिटीज, कार्डियोवैस्कुलर किडनी की बीमारी, डिप्रेशन और असामयिक मौत जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। कुछ विज्ञानियों का मानना है कि आज की जीवनशैली के चलते अल्ट्रा प्रोसेस्ड भोजन से मुक्त हो पाना लगभग असंभव है। वहीं, अध्ययन के आलोचकों की मानें तो इससे पुरानी बीमारियों का जोखिम तो बढ़ता है, पर सभी तरह के यूपीएफ से खतरा बढ़ता है, पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।

    28.6 प्रतिशत भारतीय मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं आइसीएमआर इंडिया डायबिटीज (2023) के अध्ययन के मुताबिक।
    11.4 प्रतिशत भारतीयों में डायबिटीज और 15.3 प्रतिशत में प्री-डायबिटीज की स्थिति बन चुकी है वर्तमान में।
    40 प्रतिशत भारतीयों में पेट के पास वसा का जमाव (एब्डोमिनल ओबिसिटी) हो चुका है।
    3.4 प्रतिशत बच्चों में मोटापे की समस्या चिह्नित की गई एनएचएफएस-5 में, वहीं एनएचएफएस-4 में यह आंकड़ा 2.1 प्रतिशत पर था ।

कैलोरी और पोषण के बीच बढ़ता असंतुलन
अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड में शुगर, वसा, नमक की अधिकता होने के चलते स्वाद बढ़ जाता है, जिससे लोग सेवन के लिए आकर्षित होते हैं। इसमें रिफाइंड कार्ब और शुगर की अधिकता के कारण ब्लड शुगर तेजी से बढ़ता है, जिससे शरीर का इंसुलिन रिस्पांस प्रभावित होता है। मेटाबोलिज्म प्रभावित होने के चलते टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम रहता है।

क्यों जरूरी है पारंपरिक भारतीय भोजन
सबसे बड़ी समस्या यही है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड तेजी से पारंपरिक भारतीय भोजन यानी अनाज, दालों और सब्जियों की जगह लेता जा रहा है। सही ढंग से तैयार पारंपरिक भारतीय भोजन में फाइबर और सूक्ष्म पोषक तत्वों की प्रचुरता रहती है । इससे मेटाबोलिक समस्या होने की आशंका भी कम होती है।

 

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