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सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार: मामूली गलती पर 28 दिन की जेल, अफसरों पर भारी नाराज़गी

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत के आदेश में किसी तुच्छ चूक का हवाला देकर उसकी अवहेलना करना पूरी तरह अनुचित है। यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की गई जिसमें उत्तर प्रदेश की जेल प्रशासन ने एक अंडरट्रायल कैदी की रिहाई 28 दिनों तक रोके रखी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जमानत आदेश में एक उपधारा (i) का जिक्र छूट गया था, हालांकि बाकी सभी विवरण पूरी तरह स्पष्ट थे।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, आफताब नामक आरोपी को उत्तर प्रदेश अवैध धर्मांतरण निषेध अधिनियम के तहत बुक किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को उसे जमानत दी थी। आदेश में धारा 5(i) के स्थान पर केवल धारा 5 लिखा गया था। इस मामूली चूक के आधार पर जेल अधिकारियों ने उसकी रिहाई रोक दी और वह 27 मई तक जेल में बंद रहा। जून 2025 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस देरी पर कड़ी नाराजगी जताते हुए यूपी सरकार को आफताब को 5 लाख रुपये की अंतरिम क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया था। साथ ही, कोर्ट ने गाजियाबाद के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज को मामले की विस्तृत जांच करने का निर्देश दिया।

जांच रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
17 नवंबर को जब यह मामला जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच के सामने आया, तो उन्होंने जांच रिपोर्ट का वह हिस्सा देखकर आश्चर्य व्यक्त किया जिसमें देरी के लिए अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (ADJ) जुनैद मुजफ्फर को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया गया था। जस्टिस पारदीवाला ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से तीखा सवाल पूछा- जब आदेश सुप्रीम कोर्ट का था, तो देरी के लिए ADJ को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? वह तो केवल हमारे आदेश का अनुपालन कर रहे थे। सिर्फ इसलिए कि धारा 5 की उपधारा (i) नहीं लिखी थी, व्यक्ति को 28 दिन तक जेल में क्यों रखा गया? ASG भाटी ने कहा कि मुद्दा तब सुलझा जब आरोपी ने आदेश संशोधन के लिए आवेदन दिया। इस पर बेंच ने असहमति जताई।

‘कार्यपालिका न्यायालय के आदेशों पर बैठ गई’ : जस्टिस विश्वनाथन
जस्टिस के.वी. विश्वनाथन ने कड़े शब्दों में कहा- यह तो कार्यपालिका का न्यायिक आदेशों पर बैठ जाना है। बिल्कुल बेहूदा बहाना- यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है कि यदि CJI जमानत दे दें और कोई उपधारा छूट जाए, तो सरकार उसे लागू न करे? जब अपराध संख्या, आरोपी का नाम, पुलिस स्टेशन और सब कुछ स्पष्ट था, तो ऐसी देरी क्यों?

कोर्ट ने ADJ की राय मांगी
बेंच ने कहा कि किसी अधिकारी को दोषी ठहराने से पहले उसकी बात सुनना जरूरी है। इसलिए कोर्ट ने आदेश दिया कि ADJ जुनैद मुजफ्फर अपनी लिखित टिप्पणियां दाखिल करें, खासकर जांच रिपोर्ट के पैरा 8 पर, जिसमें उन्हें पूरी तरह दोषी बताया गया है। कोर्ट ने कहा- जब सर्वोच्च न्यायालय, वह भी मुख्य न्यायाधीश की पीठ, कोई आदेश पारित करती है, तो अधिकारियों का तुच्छ त्रुटियों के आधार पर आदेश को नजरअंदाज करना बिल्कुल उचित नहीं है। यह अदालत इस चूक को गंभीरता से देख रही है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को आदेश दिया कि अधिकारी से टिप्पणी जल्द से जल्द मंगाई जाए और मामला अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। अब यह मामला 8 दिसंबर को फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा, जहां यह स्पष्ट होगा कि देरी के वास्तविक कारण क्या थे, और दोष किसका है- जेल प्रशासन का, पुलिस का, या किसी अन्य स्तर पर लापरवाही हुई।

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