आयुष्मान योजना के लाभार्थियों को इलाज के लिए करना पड़ा भुगतान: CAG
नई दिल्ली
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा किया कि योजना की मंशा के बावजूद लाभार्थियों को इलाज के लिए पैसे का भुगतान करना पड़ा। गौरतलब है कि एबी-पीएमजेएवाई के तहत लाभार्थियों को प्रति वर्ष पांच लाख रुपये तक का स्वास्थ्य कवर प्रदान किया जाता है। यह लाभार्थियों को सेवाओं के लिए कैशलेस और पेपरलेस सुविधा प्रदान करता है।
एबी-पीएमजेएवाई पर हाल ही में संसद में पेश सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट ने कहा, एसएचए (राज्य स्वास्थ्य एजेंसी) और निजी ईएचसीपीएस (पैनलबद्ध स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता) द्वारा हस्ताक्षरित समझौते में कहा गया है कि पीएमजेएवाई लाभार्थियों को पूरी तरह से कैशलेस तरीके से सेवा प्रदान किया गया। अस्पताल में मरीज के प्रवेश के बाद, सभी नैदानिक परीक्षणों, दवाओं, प्रत्यारोपण आदि का खर्च अस्पताल द्वारा वहन किया जाना चाहिए, लेकिन लेखापरीक्षा में ऐसे उदाहरण सामने आया, जहां रोगियों को इलाज के लिए भुगतान करना पड़ा। हिमाचल प्रदेश में, पांच ईएचसीपी के 50 लाभार्थियों को अपने नैदानिक परीक्षणों का प्रबंधन अन्य अस्पताल/नैदानिक केंद्र से करना पड़ा और परीक्षणों की लागत लाभार्थियों द्वारा वहन की गई।
रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि जम्मू-कश्मीर में 10 सार्वजनिक ईएचसीपी पर, 459 मरीजों ने शुरुआत में अपनी जेब से 43.27 लाख रुपये का भुगतान किया, बाद में मरीजों को प्रतिपूर्ति की गई। 75 मरीजों को 6.70 लाख रुपये की प्रतिपूर्ति अभी बाकी है। सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है, झारखंड में, बीमा कंपनी ने पाया कि लाइफ केयर हॉस्पिटल, गोड्डा के 36 मरीजों ने दवाओं, इंजेक्शन, रक्त आदि की खरीद के लिए भुगतान किया। बीमा कंपनी के अवलोकन के आधार पर एसएचए ने 28 अगस्त, 2020 को अस्पताल को पांच दिनों के भीतर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा। लेकिन अस्पताल ने न तो कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया, न ही उसके खिलाफ कोई कार्रवाई की गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मेघालय में, फरवरी 2019 से मार्च 2021 तक पांच निजी ईएचसीपी में इलाज कराने वाले 19,459 लाभार्थियों में से 13,418 (69 प्रतिशत) को छुट्टी के समय 12.34 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि का भुगतान करना पड़ा। अगस्त, 2022 में, एनएचए ने जवाब दिया कि जेब से खर्च स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपलब्धता के कारण हो सकता है। ऑडिट की राय है कि अस्पतालों को लाभार्थियों को मुफ्त सुविधाएं प्रदान करने के लिए परस्पर संबंधित सेवा प्रदाताओं के साथ सहयोग करना चाहिए।