₹119000 करोड़ की डिफेंस डील: 220 एडवांस फाइटर जेट, जो पहले नहीं थे बिकने लायक, अब बने सिकंदर

नई दिल्ली
मॉडर्न वारफेयर में एयर पावर की अहमियत से हर देश वाकिफ है. यही वजह है कि एरियल स्ट्राइक के तमाम साजो-सामान जुटाने में कोई भी देश कोर कसर नहीं छोड़ रहा है. लॉन्ग रेंज की मिसाइल हो या ड्रोन या फिर फाइटर जेट, दुनिया में इसे हासिल करने की होड़ सी मची हुई है. भारत भी बदलते माहौल के अनुसार खुद को ढालने में जुटा है. इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस सिस्टम (मिशन सुदर्शन चक्र) के साथ ही हाइपरसोनिक मिसाइल डेवलप करने की प्रक्रिया चौथे गियर में है. भारत एक और अहम प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है और वो है देसी टेक्नोलॉजी के जरिये 5th जेनरेशन फाइटर जेट डेवलप करना. इसको ध्यान में रखते हुए AMCA प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है. फाइटर जेट इंजन भी देश में ही बनाने पर पूरा जोर दिया जा रहा है, ताकि इसके लिए दूसरे देशों पर निर्भरता को पूरी तरह से खत्म किया जा सके. इन सबके बीच, एक ऐसे प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है, जिसकी चर्चा आजकल बेहद आम है. शुरुआत में जिसे डिफेंस एक्सपर्ट भी कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे थे, वही आज देश की वायु शक्ति के लिए अहम होता जा रहा है. इसकी अहमियत का पता इसी बात से चलता है कि अभी तक इसके लिए तकरीबन सवा लाख करोड़ रुपये का ऑर्डर दिया जा चुका है. यह हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) का तेजस फाइटर जेट प्रोजेक्ट.
इंडियन एयरफोर्स के पास तय स्क्वाड्रन से काफी कम बेड़ा है. यह हालत तब है जब एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी तरफ चीन साजिश रचने से बाज नहीं आ रहा है. HAL तेजस प्रोजेक्ट के तहत कई वेरिएंट में फाइटर जेट डेवलप कर रहा है. हालांकि, इंजन सप्लाई चेन में बाधा आने के चलते इस प्रोजेक्ट को धक्का जरूर लगा है, लेकिन अब इस प्रोजेक्ट की धूम भारत के साथ ही दुनिया के अन्य देशों में भी सुनाई पड़ने लगी है. बता दें कि एयरफोर्स के लिए 42 स्क्वाड्रन सैंक्शन हैं, पर फिलहाल वायुसेना को 30 या उससे भी कम बेड़े से अपना काम चलाना पड़ रहा है. वेस्टर्न बॉर्डर पर पाकिस्तान तो ईस्टर्न और नॉर्दर्न बॉर्डर पर चीन का खतरा बदस्तूर कायम है, ऐसे में एयरफोर्स को ताकतवर बनाना बेहद जरूरी है. यही वजह है कि भारत दो मोर्चों पर एक साथ सैन्य टकराव के लिए खुद को तैयार करने में जुटा है. इस मिशन में HAL का प्रोजेक्ट तेजस काफी अहम है. IAF के साथ ही सेना के अन्य अंगों की तरफ से HAL को हजारों करोड़ रुपये मूल्य के ऑर्डर मिले हैं. फाइटर जेट के प्रोडक्शन में तेज लाने की योजना के तहत इस साल 17 अक्टूबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नासिक में तेजस फाइटर जेट के लिए HAL के प्लांट में तीसरे प्रोडक्शन लाइन का उद्घाटन किया था.
HAL: तेजस फाइटर जेट की विकास गाथा
ऑर्डर वर्ष तेजस का वैरिएंट कितने जेट
मार्च 2006 तेजस Mk1 (IOC) 20
दिसंबर 2010 तेजस Mk1 (FOC) 20
फरवरी 2021 तेजस Mk1A 83
सितंबर 2025 तेजस Mk1A 97
तेजस: आसमान का सिकंदर
2006 में सिर्फ 20 विमानों की मामूली शुरुआत से लेकर 2025 में 97 विमानों के बड़े सौदे तक, स्वदेशी तेजस हल्के लड़ाकू विमान कार्यक्रम चुपचाप आज़ाद भारत की सबसे बड़ी रक्षा खरीद कहानियों में शामिल हो गया है. ‘इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग’ की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 19 वर्षों में दिए गए चार बड़े ऑर्डरों से अब तक कुल 220 लड़ाकू विमानों का ऑर्डर मिला है, जिनकी कीमत लगभग 1,19,172 करोड़ रुपये है. यह राशि दुनिया की कई बड़ी परियोजनाओं की लागत के बराबर है. साल 2006 में जब 20 शुरुआती संचालन क्षमता (IOC) वाले विमानों के लिए 2,813 करोड़ रुपये का पहला करार हुआ था, तब कई लोगों ने इसे सिर्फ तेजस प्रोगाम को ज़िंदा रखने का प्रतीकात्मक कदम माना. उस समय प्रति विमान लागत ज़्यादा थी, क्योंकि विकास पर भारी खर्च हुआ था और प्रोडक्शन लाइन भी नई-नई शुरू हुई थी. 2010 में 20 फाइनल ऑपरेशनल क्लीयरेंस (FOC) विमानों का ऑर्डर दिया गया. इसमें कीमत लगभग दोगुनी हो गई, लेकिन इसके बदले वायुसेना को पूरी तरह युद्ध के लिए तैयार विमान मिला, जिसमें हवा में ईंधन भरने की सुविधा, दूर से मार करने वाली मिसाइलें और बेहतर एवियोनिक्स शामिल थे.
असल टर्निंग प्वाइंट
असल बदलाव फरवरी 2021 में आया, जब रक्षा मंत्रालय ने 83 Mk1A विमानों के लिए 48,000 करोड़ रुपये का लंबे समय से प्रतीक्षित करार किया. यह उस समय का अब तक का सबसे बड़ा मेक इन इंडिया रक्षा सौदा था. Mk1A में AESA रडार, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली, हवा में ईंधन भरने की क्षमता और विदेशी हिस्सों पर निर्भरता में बड़ी कमी लाई गई. सबसे नया ऑर्डर सितंबर 2025 में हुआ, जिसमें 97 और Mk1A लड़ाकू विमानों के लिए 62,370 करोड़ रुपये का समझौता किया गया. यह एक अहम मोड़ है. इससे न सिर्फ तेजस विमानों की कुल संख्या 220 हो गई (करीब 11 वायुसेना स्क्वाड्रन), बल्कि प्रति विमान लागत में हल्की बढ़ोतरी नए स्वदेशी ‘उत्तम’ AESA रडार, बेहतर हथियारों और ज़्यादा भारतीय पुर्जों के इस्तेमाल को दिखाती है.
प्राइवेट सेक्टर की भी बल्ले-बल्ले
इन ऑर्डरों के साथ भारतीय वायुसेना इस दशक के अंत तक अपने बचे हुए मिग-21 स्क्वाड्रनों को पूरी तरह हटा देगी. तेजस Mk1A के स्क्वाड्रन पहले ही पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों में तैनात हो चुके हैं. 2025 का करार यह भी सुनिश्चित करता है कि HAL की नासिक स्थित प्रोडक्शन लाइन 2030 के दशक तक बिना रुके चलती रहे. इस कार्यक्रम से निजी क्षेत्र को भी बड़ा फायदा हुआ है. अब 500 से ज़्यादा MSME कंपनियां तेजस के लिए पुर्जे सप्लाई कर रही हैं. टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और एलएंडटी जैसी कंपनियां असेंबली लाइन को और सहयोग देने की तैयारी में हैं.
एक्सपोर्ट के भी मौके
220 विमानों के बाद भी तेजस की कहानी खत्म नहीं होती. ज्यादा ताकतवर तेजस Mk2 (2026-27 में पहली उड़ान की उम्मीद) और दो इंजन वाला पांचवीं पीढ़ी का AMCA फाइटर इसी आधार पर आगे बढ़ेगा. अगर दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों के साथ निर्यात के मौके बने, तो Mk1A लाइन के लिए आगे और ऑर्डर भी मिल सकते हैं.



